नई दिल्ली: सयाने कह गए हैं सियासत में ना तो कोई स्थाई दोस्त होता है और ना ही दुश्मन. सत्ता के लिए गठबंधन बनने और बिगड़ने का खेल पुराना है और यूं ही चलता आया है और चलता रहेगा. आज दोस्त तो कल दुश्मन. शायद ऐसा ही कुछ फिर दिखने वाला है. वक्त की नब्ज को समझने की कोशिश करें तो लग रहा है कि ये सियासी चमत्कार बिहार में देखने को मिलेगा.
बिहार में फिलहाल आरजेडी और जेडीयू का गठबंधन है. नीतीश कुमार ने एनडीए के साथ 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ते हुए लालू यादव की पार्टी आरजेडी से हाथ मिलाया और बिहार में सत्ता हासिल की. लेकिन वो कहते हैं ना कि राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं है, ना तो कुर्सी और ना ही गठबंधन तो वैसा ही कुछ हालात बनते नजर आ रहे हैं.
मुद्दे की बात ये है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गुरूवार को सभी विपक्षी पार्टियों को बुलाया जहां ये दिखाने की कोशिश की गई कि सरकार के खिलाफ विपक्ष एकजुट है. लेकिन नीतीश कुमार बैठक में शामिल नहीं हुए. तय कार्यक्रमों का हवाला देकर उन्होंने बैठक में आने में असमर्थता जताई. वहीं दूसरी तरफ शुक्रवार को पीएम मोदी ने मॉरिशस के प्रधानमंत्री के सम्मान में लंच का कार्यक्रम रखा जिसमें नीतीश कुमार को भी न्यौता गया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया.
अब थोड़ा और पीछे चलते हैं. हाल ही में नीतीश कुमार ने साफ कर दिया था कि वो 2019 में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं होंगे. उन्होंने बिना नाम लिए कहा कि ‘जनता को जिनमें क्षमता दिखाई देती है उसे ही प्रधानमंत्री बनना चाहिए. पिछली बार जनता को नरेंद्र मोदी में क्षमता दिखी तो वो प्रधानमंत्री बने.’
अब नीतीश कुमार का एक और बयान आपको बताते हैं. जब बीजेपी ने 1000 करोड़ रूपये के लैंड डील में लालू यादव और उनके परिवार के फंसे होने का आरोप लगाया तो नीतीश ने कहा कि ‘ अगर बीजेपी के पास सबूत हैं तो उन्हें लीगल एक्शन लेना चाहिए’. इसके बाद ही ईडी ने लालू यादव के 22 ठिकानों पर छापेमारी की.
नीतीश के लक्षण देखते हुए सियासी पंडितों का यही अनुमान है कि वो कभी भी बीजेपी के साथ फिर से जा सकते हैं.