नई दिल्ली: कूलभूषण जाधव मामले पर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस का फैसला आने के बाद पाकिस्तान भड़क गया है. पाकिस्तान विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा है कि पहले भी तीन बार इंटरनेशनल कोर्ट इस तरह का फैसला दे चुका है और पाकिस्तान इस फैसले को मानने के लिए बाध्य नहीं है. पाकिस्तान का ये भी कहना है कि ये मामला इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के अधिकार क्षेत्र में भी नहीं आता है.
लेकिन ऐसा नहीं है. कोर्ट का फैसला मानने के लिए पाकिस्तान बाध्य है. यूनाइटेड नेशंस चार्टर का आर्टिकल 94 कहता है कि यूनाइेटड नेशंस के सभी सदस्य देशों को ICJ के फैसलों का पालन करना होगा. भारत और पाकिस्तान दोनों ने ही इसकी पुष्टि और हस्ताक्षर किए हैं. इसके अलावा दूतावास संबंधों को लेकर विएना कन्वेन्शन में एक ‘वैकल्पिक प्रोटोकॉल’ भी है जिसमें विवादों का निपटारा करना अनिवार्य है. भारत और पाकिस्तान दोनों ही इस ‘प्रोटोकॉल’ के तहत आते हैं.
विवादित मामलों में अदालत के फैसले निर्णायक होते हैं और उन पर कोई अपील नहीं की जा सकती. हालांकि ICJ अपने फैसले लागू कराने के लिए दबाव नहीं बना सकता. ऐसे में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की भूमिका सामने आती है. वह सदस्य देशों को अदालत का फैसला मानने के लिए दबाव बना सकती है. लेकिन इस तरह से फैसलों को लागू करने में भी समस्याएं हैं.
पहला, अगर परिषद के किसी सदस्य देश या उसके किसी सहयोगी देश के खिलाफ फैसला आता है तो वह सदस्य देश अपने वीटो अधिकार के तहत उस फैसले को अस्वीकार कर सकता है. ऐसा ‘निकरैग्वा बनाम अमेरिका’ के केस में हो चुका है. अदालत ने निकरैग्वा के पक्ष में फैसला सुनाया था. इसके तहत उसे अमेरिका से मुआवजा मिलना था. लेकिन अमेरिका ने इस कार्यवाही से इनकार करने के साथ-साथ सुरक्षा परिषद के फैसले को भी ब्लॉक कर दिया. अब इस लिहाज से देखें तो पाकिस्तान को फायदा पहुंचाने के लिए चीन वीटो का इस्तेमाल कर सकता है, क्योंकि वह सुरक्षा परिषद का सदस्य है.