नई दिल्ली : तीन तलाक पर आज सुनवाई का पांचवां दिन है. सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संवैधानिक बेंच इस महत्वपूर्ण मामले पर सुनवाई कर रही है. आज (बुधवार) को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट उलेमा-ए-हिंद से पूछा है कि अगर आपकी संस्था और साहित्य कहता है कि ट्रिपल तलाक़ बुरा और पाप है तो आप कैसे कह सकते है कि ये धर्म के लिए जरूरी है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा तलाक़ इस्लाम में है लेकिन ये कहना कि ट्रिपल तलाक़ धर्म के लिए जरूरी है? स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत अगर मुस्लिम पुरुष शादी करता है जिसके तहत बहुविवाह को नहीं चुनता तो क्या वो इस्लामिक माना जायेगा या नहीं? जबकि ज़मात की तरफ से कहा गया कि ट्रिपल तलाक़ धर्म का हिस्सा है तो आर्टिकल 25 के तहत अधिकार प्राप्त है. आर्टिकल 25 तभी संरक्षण देता है जब तो धर्म के लिए जरूरी हो. पर्सनल लॉ में कानूनी बातों को कोर्ट ने परीक्षण कर सकता है लेकिन जो प्राचीन प्रथा है उसको आप कैसे परीक्षण कर सकते है?
सुप्रीम कोर्ट ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से पूछा कि बोर्ड सभी काजियों को निर्देश जारी कर सकता है कि मॉडर्न निकाहनामे में महिलाओं को ये हक़ हो की वो ट्रिपल तलाक़ को न कह सके? बोर्ड ने कहा कि हम इस पर विचार करेंगे. हालांकि निकाह के समय इस तरह की बात करने से लोग असहज हो जाते है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से बहस पूरी हुई. अब ज़मात बहस करेगा.
इससे पहले चौथे दिन की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि मुस्लिम महिलाओं को भी पुरुषों से तीन तलाक बोलने का अधिकार है.