नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक पर सुनवाई के चौथे दिन मंगलवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि ऐसा नहीं है कि पुरुषों को ही इसका हक है, महिलाएं भी ट्रिपल तलाक बोल सकती हैं. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि मुस्लिम समुदाय में शादी एक समझौता है.
बोर्ड ने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं के हितों और उनकी गरिमा की रक्षा के लिए निकाहनामे में कुछ खास इंतजाम करने का विकल्प खुला हुआ है. बोर्ड ने कहा कि महिला निकाहनामे में अपनी तरफ से कुछ शर्तें भी रख सकती है.
वहीं बोर्ड ने बहुविवाह के मसले पर पिछले साल सितंबर में कहा था कि कुरान, हदीस और सर्वमान्य मत मुस्लिम पुरुषों को 4 पत्नियां रखने की इजाजत देता है. बोर्ड ने कहा था कि इस्लाम बहुविवाह की इजाजत तो देता है लेकिन इसे प्रोत्साहित नहीं करता. बोर्ड ने साथ में यह भी कहा था कि बहुविवाह पुरुषों की वासना की पूर्ति के लिए नहीं है बल्कि यह एक सामाजिक जरूरत है.
वहीं मंगलवार को मामले की सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने मुस्लिम लॉ बोर्ड का पक्ष रखते हुए कहा कि संबिधान का अनुच्छेद 371 किसी भी समुदाय के रीति-रिवाजों और प्रथाओं की रक्षा का अधिकार देता है. पिछले साल सितंबर में बोर्ड ने कहा था कि कुरान और हदीस पुरुषों को चार पत्नियां रखने की इजाजत तो देता है लेकिन वो इसे प्रोत्साहित कतई नहीं करता.
सीजेआई जे.एस. खेहर की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ के सामने पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि वैवाहिक रिश्ते में प्रवेश से पहले महिलाओं के सामने 4 विकल्प होते हैं जिनमें स्पेशल मैरेज ऐक्ट 1954 के तहत पंजीकरण का विकल्प भी शामिल है.
बता दें कि पिछले साल सितंबर में AIMPLB ने सुप्रीम कोर्ट में शायरा बानो और अन्य की तीन तलाक को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि शरिया पति को तलाक का अधिकार देती है क्योंकि पुरुषों में महिलाओं के मुकाबले फैसले लेने की क्षमता ज्यादा होती है.