नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी स्कूलों में कक्षा एक से लेकर आठवीं तक के छात्रों के लिये हिन्दी अनिवार्य करने का निर्देश केंद्र और राज्यों को देने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा पंजाबी क्यों नहीं, संस्कृत क्यों नहीं या दूसरी भाषा क्यों नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अपने पार्टी से क्यों नहीं पूछा जबकि वो सरकार में है. कोर्ट ने याचिका को ख़ारिज कर दिया.
याचिका में संविधान के विभिन्न प्रावधानों का हवाला देते हुये 1968 के त्रिभाषा फार्मूले की राष्ट्रीय नीति के प्रस्ताव पर राज्यों द्वारा केंद्र से परामर्श करके अमल नहीं करने का हवाला दिया गया है. याचिका में कहा गया है कि त्रिभाषा फार्मूले में ”हिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी, अंग्रेजी और एक आधुनिक भारतीय भाषा और गैर हिन्दीभाषी राज्यों में हिन्दी, अंग्रेजी और एक क्षेत्रीय भाषा” के अध्ययन का प्रावधान है लेकिन इस पर अभी तक अमल नहीं हुआ है.
याचिका में कहा गया है कि भाईचारा बढाने और एकता तथा राष्ट्रीय समरता सुनिश्चित करने के लिये पूरे देश में कक्षा एक से कक्षा आठ तक के छात्रों के लिये हिन्दी अनिवार्य की जानी चाहिए. याचिका के अनुसार 1968 की नीति को संसद ने भी अपनाया है. यह नीति कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे गैर हिन्दी भाषी राज्यों की मांग पर बनायी गयी थी. हालांकि सभी राज्यों ने आज तक त्रिभाषा फार्मूले का पालन नहीं किया.
याचिका में कहा गया है कि लोक सेवक और उच्चतर न्यायपालिका के न्यायाधीश, जिन्होंने क्षेत्रीय भाषा में पढाई की है, हिन्दी भाषी राज्यों में काम करते वक्त हिन्दी में पढने, लिखने और बोलने में दिक्कतों का सामना करते हैं. कक्षा एक से आठवीं तक हिन्दी अनिवार्य करके इस समस्या से आसानी से निबटा जा सकता है.
याचिका में तर्क दिया गया है कि छात्र इस समय अंग्रेजी को अनिवार्य और हिन्दी का वैकल्पिक भाषा के रूप में चुनाव करते हैं जो उचित नहीं है. याचिका के अनुसार प्रत्येक देश राष्ट्रभाषा को पाठ्यक्रम में अनिवार्य हिस्सा बनाता है लेकिन भारत में आठवीं कक्षा तक हिन्दी भाषा अनिवार्य नहीं है.