नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में आज गौरक्षा के नाम पर बने संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता तहसीन पूनावाला की मांग को ठुकराया जिसमें कहा गया था कि हर जिले में गौरक्षकों से जुडे मामलों की निगरानी के लिए किसी पुलिस अफसर को नियुक्त किया जाए. याचिका में कहा गया था कि अगर ऐसी कोई घटना होती है तो उस अफसर को जिम्मेदार ठहराया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम ऐसा कोई आदेश जारी नहीं करेंगे. पहले केंद्र और राज्यों के जवाब आने चाहिए. कोर्ट ने केंद्र और पांच राज्यों को छह हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है. कर्नाटक अपना जवाब दाखिल कर चुका है. वहीं विश्व गौसुरक्षा वाहिनी ने भी मामले में अर्जी दाखिल कर कहा है कि गौरक्षकों पर प्रचिबंद्ध लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर देना चाहिए. कोर्ट ने उसे भी पक्ष रखने की इजाजत दी है.
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने 6 राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. गुजरात, राजस्थान, झारखंड, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक को नोटिस जारी किया था.
याचिकाकर्ता ने कहा कि राजस्थान ने इस मामले में जवाब दाखिल नहीं किया उन्हें हालिया हुई घटना (अलवर वाली) पर भी जवाब देने को कहा जाये. हालांकि कोर्ट ने इस पर कुछ नही कहा.
गौरक्षा के नाम पर बने संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की माँग को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. पिछली सुनवाई में इस मुद्दे पर
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और छह राज्य सरकारों से जवाब माँगा था लेकिन जवाब दाखिल ना करने पर नोटिस जारी किया गया है.
याचिकाकर्ता तहसीन पूनावाला ने गौरक्षा के नाम पर दलितों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हिंसा रोकने की माँग की है और कहा है कि ऐसी हिंसा करने वाले संगठनों पर उसी तरह से पाबंदी लगाई जाए जिस तरह की पाबंदी सिमी जैसे संगठन पर लगी है.
याचिका में कहा गया है कि देश में कुछ राज्यों में गौरक्षा दलों को सरकारी मान्यता मिली हुई है जिससे इनके हौंसले बढ़े हुए हैं. माँग की गई है कि गौरक्षक दलों की सरकारी मान्यता समाप्त की जाए. याचिका के साथ में गौरक्षक दलों की हिंसा के वीडियो और अखबार की कटिंग लगाई गई हैं और अदालत से इनका संज्ञान लेने को कहा गया है.
याचिका में कहा गया है कि गौशाला में गाय की मौत और गौरक्षा के नाम पर गौरक्षक कानून को अपने हाथ में ले रहे हैं. याचिका में उत्तर प्रदेश, महाराष्टï, गुजरात, और कर्नाटक के उस कानून को असंवैधानिक करार देने की गुहार की गई है, जिसमें गाय की रक्षा के लिए निगरानी समूहों के पंजीकरण का प्रावधान है.
याचिका में कहा गया कि गौरक्षा निगरानी समूह कानून के दायरे से बाहर जाकर काम कर रहे हैं. गौरक्षा केनाम पर गौरक्षक अत्याचार कर रहे हैं और उनकेद्वारा किए जाने वाले अपराध न केवल भारतीय दंड संहिता के दायरे में हैं बल्कि एससी/एसटी एक्ट, 1989 के दायरे में भी है. याचिका में ‘सलवा जूदूम (नक्सल विरोधी समूह) मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 2011 में दिए उस फैसले का हवाला दिया गया है जिसमें सलवा जूदूम पर पाबंदी लगाई गई थी.
याचिका में कहा गया कि कानून के तहत मिले संरक्षण की वजह से ऐसे लोग हिंसा भड़काने का काम करते हैं और अल्पसंख्यकों और दलितों पर अत्याचार करते हैं.