क्या अरविंद ‘आप’ की राजनीति बचा पाएंगे ?

चुनाव में किसी पार्टी की जीत-हार से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, लेकिन हार के बाद अगर पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में हाहाकार मच जाए, तो किसी भी पार्टी का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है. एमसीडी चुनाव के बाद ऐसा ही खतरा आम आदमी पार्टी के सामने दिख रहा है.

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क्या अरविंद ‘आप’ की राजनीति बचा पाएंगे ?

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  • April 28, 2017 4:13 pm Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago

नई दिल्ली: चुनाव में किसी पार्टी की जीत-हार से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, लेकिन हार के बाद अगर पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में हाहाकार मच जाए, तो किसी भी पार्टी का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है. एमसीडी चुनाव के बाद ऐसा ही खतरा आम आदमी पार्टी के सामने दिख रहा है.

पार्टी में टूट की आशंका इतनी बड़ी है कि अरविंद केजरीवाल को अपने पार्षदों को वफादारी की कसम खिलाने के लिए मजबूर होना पड़ा. क्या अरविंद ऐसे टोटकों से आम आदमी पार्टी की राजनीति बचा पाएंगे ?

केजरीवाल के लिए अब ईमानदारी की बजाय वफादारी क्यों ज़रूरी हो गई है, पंजाब की मायूसी और गोवा में करारी हार के बाद आम आदमी पार्टी की सारी उम्मीदें दिल्ली में एमसीडी चुनावों पर टिकी थीं, लेकिन एमसीडी में केजरीवाल की उम्मीद टूटी और अब पार्टी टूटने का खतरा सिर पर मंडराता दिख रहा है.

दिल्ली के तीनों नगर निगमों में औंधे मुंह गिरने के बाद केजरीवाल ने पार्टी की तीन अहम बैठकें बुलाईं. केजरीवाल ने पार्टी की पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी की बैठक ली, जिसमें दिलीप पांडे की जगह गोपाल राय को दिल्ली का नया संजोयक बनाने का एलान किया गया.

इससे पहले केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी के दिल्ली के सभी विधायकों की बैठक बुलाई थी, जिसमें 5 बाग़ियों और दाग़ियों के साथ-साथ 12 और विधायक गैरहाजिर रहे. इससे पार्टी में बग़ावत की खबरों को और हवा मिल गई.

केजरीवाल ने एमसीडी में आम आदमी पार्टी के नवनिर्वाचित पार्षदों की बैठक में रही-सही कसर भी पूरी कर दी. अब तक पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को ईमानदारी का सबक सिखाते रहे केजरीवाल ने अपने पार्षदों को वफादारी की कसम खिलाई.

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