नई दिल्ली: बॉलीवुड नायक के तौर पर ये विनोद खन्ना की पहली फिल्म थी. वैसे उनकी पहली फिल्म ‘मन का मीत’ थी. जिसे सुनील दत्त ने अपने भाई को लॉन्च करने के लिए बनाई थी. लेकिन विलेन के किरदार में एक चेहरा पर्दे पर आया तो किसी को उसकी सूरत-सीरत देखकर ये नहीं पचा कि ऐसा भी विलेन हो सकता है.
बॉलीवुड में सैकड़ों हीरो हैं. विनोद खन्ना के समकालिन उनसे पहले के सुपरस्टार. और उनके बाद के सुपरस्टार. लेकिन विनोद खन्ना वाली बात शायद ही किसी में है. क्योंकि पर्दे पर तो बतौर हीरो एक अभिनेता कई जीवन जीता है.हर दिन अपने किरदार को जीता है. लेकिन विनोद खन्ना ने अपनी जिंदगी में ही अपने लिए कई जीवन जिए.
उनका जाना सिर्फ एक अभिनेता का जाना भर नहीं बल्कि स्टारडम के साथ एक सादगी, शालीनता, सौम्यता का जाना है. जो आज विरले दिखती है. ऐसी सादगी जिसने बॉलीवुड में स्टारडम की बंद खिड़की खोल दी. जरा सोचिए जब आपके पास मर्सिडीज हो, कई बंगला हो, स्टारडम हो हर वो चीज हो जो आप चाहते हों. आपकी कदमों में पूरा जहां हो.
तब 100 में 99 लोग…’और-और-और’ के चक्रव्यूह में फंस जाते हैं. लेकिन विनोद खन्ना ने ऐसे समय अपने लिए ‘कुछ और’ को चुना. जब वो अमिताभ, जितेन्द्र, राजेश खन्ना से आगे निकलते दिख रहे थे. तब अध्यात्म की तरफ रुख कर लिया.
दरअसल यही विनोद खन्ना का अधूरा ख्वाब था. अध्यात्म को जीने का ख्वाब. उसमें रमने-बसने का ख्वाब. दिमाग की जगह दिल की सुनने का साहस. हॉलीवुड से लेकर बॉलीवुड तक ऐसे उदाहरण विरले मिलते हैं.