कोलकाता: हिंदू मुस्लामानों का नाम लेकर राजनीति चमकाने वाले नेताओं की देश में कमी नहीं है लेकिन जमीनी स्तर पर क्या माहौल है इसकी बानगी पश्चिम बंगाल के उस इलाके में देखने को मिली जो अमूमन सबसे अशांत माना जाता है. यहां बात हो रही मालदा की जहां सांप्रदायिक दंगों की खबरें अक्सर अखबारों की सुर्खियां बनती हैं.
लेकिन आज हम आपको दंगों की नहीं बल्कि आपसी सौहार्द की एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं जिससे भारत की गंगा-जमुनी तहजीब की सौंधी खुशबू आती है. दरअसल हुआ यूं कि सोमवार को इसी इलाके में रहने वाले रजक विश्वास की मौत हो गई.
परिवार की माली हालत इतनी खराब थी कि वो उसका अंतिम संस्कार भी नहीं कर सकते थे. मुस्लिम बहुल इलाके में सिर्फ दो ही हिंदू परिवार थे ऐसे में अंतिम यात्रा के लिए चार कंधे भी पूरे नहीं पड़ रहे थे. ऐसे में सामने आए इलाके के मुसलमान जिन्होंने ना सिर्फ विश्वास के अंतिम संस्कार के लिए सभी जरुरी सामान जुटाया बल्कि कंधा देकर उसे शमशान घाट तक पहुंचाया और पूरे क्रिया के साथ उसका अंतिम संस्कार किया.
विश्वास के पिता कहते हैं कि इलाके के इमाम भी विश्वास की अंतिम यात्रा में साथ गए साथ ही बहुत सारे मुसलमान कंधा देकर करीब 3 किलोमीटर तक विश्वास के पार्थिव शरीर को शमशान घाट तक लेकर गए और पूरे क्रियाक्रम का खर्च भी खुद ही उठाया.