नई दिल्ली. एक पुरानी कहावत है कि अमीर के लिए खाना खाने का सही वक्त तब होता है जब उसे भूख लगती है और गरीब के लिए तब, जब उसे खाने के लिए कुछ मिल जाता है. आज अगर आजाद हिंदुस्तान को देखें तो ये कहावत ठीक बैठती है क्योंकि इस मुल्क में हज़ारों टन […]
नई दिल्ली. एक पुरानी कहावत है कि अमीर के लिए खाना खाने का सही वक्त तब होता है जब उसे भूख लगती है और गरीब के लिए तब, जब उसे खाने के लिए कुछ मिल जाता है.
आज अगर आजाद हिंदुस्तान को देखें तो ये कहावत ठीक बैठती है क्योंकि इस मुल्क में हज़ारों टन अनाज हर साल मंडियों और गोदामों में सड़ जाता है. इस देश में अनाज की कमी नहीं है लेकिन रख-रखाव की व्यवस्था चरमरा गई है. आखिर क्यों इस स्तर पर ढीली पड़ती है सरकार?
‘अभियान’ में देखिए क्या होता है अनाजों के साथ?