नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को विधवाओं की स्थिति को लेकर सरकार को फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि जब भी कोई दिशा निर्देश पास किया जाता है, ऐसा दावा किया जाता है कि अदालतें सरकार चलाने का प्रयास कर रही हैं, जो काम ही नहीं करना चाहती.
न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने देश में बेसहारे विधवाओं की हालत पर ध्यान न दिये जाने पर सरकार को जमकर फटकार लगाई. पीठ ने कहा कि आप (सरकार) इसे करना नहीं चाहते और जब हम कुछ कहते हैं तो आप कहते हैं कि अदालत सरकार चलाने की कोशिश कर रही है.
दरअसल, शीर्ष अदालत ने निराश्रित विधवाओं की हालत में सुधार के लिए ध्यान न देने पर सरकार पर एक लाख रपये का जुर्माना भी लगाया और इसके लिए सरकार को महज चार हफ्ते का समय दिया है.
संयुक्त बेंच ने कहा है कि आपको भारत की विधवाओं का ख्याल नहीं है. आप उनकी चिंता नहीं करते. आप एक ऐफीडेविट दाखिल करें और उसमें कहें कि आप भारत की विधवाओँ के लिए चिंतित नहीं हैं. आपने कुछ नहीं किया है…यह पूरी तरह से लाचारी है. सरकार कुछ करना ही नहीं चाहती.
शीर्ष अदालत ने पहले ही केंद्र सरकार को कहा था कि वो राष्ट्रीय महिला आयोग के सुझावों पर चर्चा करने के लिए बैठक बुलाने और देश की विधवाओँ की स्थिति में सुधार लाने के लिए दिशा निर्देश तैयार करें.
गौरतलब है कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के परिषद ने कोर्ट को बताया था कि महिला आयोग और विशेषज्ञों के सुझाव पर 12 और 13 अप्रैल को मीटिंग होनी थी.
सुनवाई के दौरान आज पीठ ने केंद्र से सवाल किया कि जब कोर्ट को आश्वासन दे दिया गया था, फिर भी यह बैठक क्यों नहीं हुई? कोर्ट ने आगे कहा कि आपने कहा था कि 12 और 13 को मीटिंग होगी, मगर ऐसी कोई मीटिंग नहीं हुई. आपने कुछ भी नहीं किया. आपलोग इतने जिद्दी हैं कि हमलोग कुछ भी नहीं कर सकते.
सुनवाई के अंत में पीठ ने कहा कि सरकार और जितने भी उत्तरदाई संगठन हैं, दोनों को मिलकर बैठक करनी चाहिे और एक सहमति दिशा निर्देश की सूची बनाकर आज पास कर देना चाहिए.
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट साल 2007 में उत्तर प्रदेश के वृंदावन की महिलाओँ की स्थिति को लेकर दायर एक याचिका के संबंध में सुनवाई कर रही थी. बता दें कि वृंदावन और मथूरा में करीब 5-10 हजार विधवा महिलाएं भिखारियों की तरह आश्रम में जीवन जी रही हैं.