नई दिल्ली: अब आप इसे देश में मोदी लहर का असर समझें या फिर राजनीति में बदलते दौर की शुरुआत, लेकिन ये सच है कि दिल्ली नगर निगम के चुनाव में भी सभी पार्टियों के लिए करो या मरो जैसी हालत पैदा हो गई है. एमसीडी चुनाव में टिकटों की मारामारी से लेकर प्रचार में जितना ज़ोर दिखा, उससे यही लगा कि मानो दिल्ली में विधानसभा चुनाव की फुल ड्रेस रिहर्सल हो रही है.
10 साल से एमसीडी की सत्ता में काबिज बीजेपी ने राजनाथ सिंह से लेकर अपने तमाम कद्दावर नेताओं को प्रचार में उतारा, तो आम आदमी पार्टी के लिए एमसीडी चुनाव केजरीवाल सरकार की लोकप्रियता का टेस्ट बन गया है. दिल्ली की राजनीति में साफ हो चुकी कांग्रेस एमसीडी चुनाव के सहारे अपनी खोई ज़मीन वापस पाने की उम्मीद पाले हुए है.
तीनों पार्टियों के सामने विरोधियों के साथ-साथ अपनी पार्टी के बागियों से निपटने की चुनौती है. एमसीडी चुनाव को बीएसपी, जेडीयू जैसे दलों के साथ-साथ स्वराज इंडिया की मौजूदगी ने भी दिलचस्प बना दिया है.
चूंकि एमसीडी के चुनाव में भी मोदी सरकार, ईवीएम की गड़बड़ी और केजरीवाल सरकार की परफॉर्मेंस जैसे मुद्दे हावी हैं, लिहाजा ये सवाल बड़ा हो गया है कि क्या एमसीडी के नतीजों से केजरीवाल और कांग्रेस का भविष्य तय होगा.
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