नई दिल्ली: कहते हैं पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब लेकिन यूपी में पढ़ेगा कौन और पढ़ाएगा कौन ? बेहद अहम इस सवाल के साथ देश के सबसे बड़े प्रदेश में हमारी पड़ताल जारी है. आज हमारी ये स्पेशल रिपोर्ट 21वीं सदी के हिंदुस्तान के वर्तमान पर सवाल खड़े करेगी. और हम सबको हमारी सरकार को भविष्य की चिंता में डूबो देगी.
हमारा मकसद है यूपी में शिक्षा के स्तर को अंधकार से निकालना. और सामने उम्मीद का एक नया सबेरा लाना.यूपी की राजधानी लखनऊ में छठी और सातवीं में पढ़ने वाले बच्चों को मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के नाम नहीं मालूम. आम, इमली और संतरा लिखने में इनके हाथ कांपते हैं. फिक्र होती है इनके भविष्य की सवाल इनके टीचर पर भी उठते हैं.
ये तस्वीरें बदलिए सरकार इसीलिए तो हम सच दिखाते हैं. रघुनाथ खेड़ा मिडिल स्कूल में सबसे पहले हम छठी क्लास में पहुंचे. प्राइमरी पास कर चुके इन बच्चों से हमने सामान्य ज्ञान के छोटे-मोटे सवाल किए. इसके बाद हमने बच्ची से ब्लैकबोर्ड पर उसका नाम हिंदी और अंग्रेजी में लिखने को कहा. इसके बाद हमने एक-एक कर कई और छात्र-छात्राओं को बुलाया.
इन्हें अंग्रेजी में अपना नाम लिखने में दिक्कत हो रही थी फल-फूल के नाम नहीं जा सकता है. टीचर कहती हैं कि इन बच्चों ने अभी-अभी स्कूल में दाखिला लिया है. लेकिन ये पहले भी तो किसी स्कूल से प्राइमरी पास करके आए हैं. खैर चलिए अब स्कूल के सबसे सीनियर क्लास का हाल जानते हैं.
आठवीं क्लास में ही एक छात्र ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के नाम तो बताए लेकिन अंग्रेजी के बेसिक नॉलेज में वो भी फेल हो गया.आठवीं के बच्चों की हालत देख कोई भी सिर पीट ले. लेकिन जब हमने मास्टरजी से इन बच्चों के बारे में पूछा तो उन्होनें हंसते हुए जवाब दिया है.
सालों से हम और आप अक्कड़ बक्कड़ बंबे बो सुनते आए हैं. साल 2005 में इस पर एक टीवी सीरियल भी बना.लेकिन अक्कड़ बक्कड़ बंबे बो का मतलब क्या है.आज तक साफ नहीं हो पाया. यूपी के स्कूलों की हालत भी ठीक ऐसी ही है. यहां टीचर भी हैं, छात्र भी, पढ़ाई भी होती है. लेकिन रिजल्ट समझ से परे है.