नई दिल्ली : 19वीं सदी के महान विचारक, समाज सेवी, लेखक, दार्शनिक और क्रान्तिकारी कार्यकर्ता ज्योतिराव फुले की आज 190वीं जयंती है. इस मौके पर पीएम मोदी ने ज्योतिबा को नमन करते हुए श्रद्धांजलि दी है. साथ ही ज्योतिबा द्वारा किए गए कार्यों को सराहा है.
ज्योतिराव फुले ने 1873 में महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया. जिसके माध्यम से उन्होंने महिलाओं व दलितों और पिछड़े समाज के उत्थान के लिए अनेक कार्य किए. समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे.
समाज सेवी महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 1827 ई. में पुणे में हुआ था. उनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे आकर फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करने लगा था. इसलिए ज्योतिबा ‘फुले’ के नाम से जाने जाते हैं. ज्योतिबा ने कुछ समय पहले तक मराठी में अध्ययन किया, बीच में पढाई छूट गई और बाद में 21 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी की सातवीं कक्षा की पढाई पूरी की. ज्योतिराव फुले का विवाह 1840 में सावित्री बाई से हुआ, जो बाद में स्वयं एक मशहूर समाजसेवी बनीं. दलित व स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में दोनों पति-पत्नी ने मिलकर काम किया.
दलितों और पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए ज्योतिबा ने ‘सत्यशोधक समाज’ स्थापित किया. उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी. ज्योतिबा शुरु से ही बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे. ज्योतिराव फुले ने विधवाओं और महिलाओं के कल्याण के लिए जीवन भर संघर्ष किया.
स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने 1848 में एक स्कूल खोला. यह देश का पहला ऐसा विद्यालय था, जिसमें लड़कियों को पढ़ाया जाता था. लड़कियों को पढ़ाने के लिए जब उन्हें कोई अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम करके अपनी पत्नी सावित्री को इस योग्य बनाया.
समाज के कथित तौर पर उच्च वर्ग के लोगों ने शुरु से ही उनके काम में बाधा डालने की चेष्टा की, किंतु जब फुले आगे बढ़ते ही गए तो उनके पिता पर दबाब डालकर पति-पत्नी को घर से निकालवा दिया. इससे कुछ समय के लिए उनका काम रुका अवश्य, पर शीघ्र ही उन्होंने एक के बाद एक बालिकाओं के तीन स्कूल खोल दिए.
ज्योतिराव फुले ने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं. जिनमें तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, ब्राह्मणों का चातुर्य, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत, राजा भोसला का पखड़ा आदि प्रमुख हैं. 28 नवम्बर 1890 को 63 साल की उम्र में इन महान आत्मा की मृत्यु हो गई.