नई दिल्ली: पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने आज पूर्व भारतीय नौसैनिक कुलभूषण जाधव को जासूसी के आरोप में फांसी की सजा सुना दी. खबर आग की तरह फैली और भारत ने इस फैसले के खिलाफ कड़ा विरोध दर्ज किया. लेकिन जाधव के खिलाफ आए फैसले ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं जिनका तर्क सहित जवाब ढूढ़ा जाना बहुत जरूरी है.
जाधव के पास मिला भारत का पासपोर्ट
दुनिया की तमाम इंटेलिजेंस एजेंसियों के लोग खूफिया मिशन पर भेजे जाते हैं लेकिन क्या कभी ऐसा देखने को मिला है कि जो जासूस दूसरे देश में जासूसी के लिए भेजा गया है वो अपने देश का पासपोर्ट भी लेकर जाए. ताकि अगर वो पकड़ में आए तो अपनी नागरिक्ता दिखा सके? कुलभूषण जाधव की बात करें तो उनके पास भारतीय पासपोर्ट था जबकि जासूस अपने साथ अपने देश का पासपोर्ट नहीं बल्कि दूसरे देश का पासपोर्ट रखते हैं.
पूर्व प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल के समय से भारतीय खूफिया एजेंसी ने पाकिस्तान में अपने अंडर कवर ऑपरेशन शुरू किया था. आई के गुजराल का मानना था कि इस कदम से दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच शांति वार्ता तेज होगी.
खास बात ये है कि पाकिस्तान ने अपने पड़ोस में खुद इतने दुश्मन बना लिए हैं कि भारत को जासूसी के लिए अपने लोग भेजने की जरूरत ही नहीं है. उदाहरण के लिए एंटी तालिबान अफगान ग्रुप, अफगान नेता हामिद करजई और अब्दुल्ला अब्दुल्ला जैसे नेता पाकिस्तानी सेना से नफरत करते हैं क्योंकि पाकिस्तानी सेना उनके इलाके में दखलअंदाजी करती है और अफगान लोगों पर जुल्म करती है.
बलोच और शिया
पाकिस्तान के जबरन कब्जे वाले इलाके बलुचिस्तान और शिया मुसलमान जिन्हें अपने ही देश में जबरन दबाकर रखा जाता है वो पाकिस्तानी सेना से नफरत करते हैं. ऐसे में वो भारतीय खूफिया एंजेंसी के साथ काम करने के लिए तत्पर रहते हैं.
इजराइल की खूफिया एजेंसी मोसाद को दुनिया की सबसे खूंखार इंटेलिजेंस एजेंसी माना जाता है. उसके एक अधिकारी ने एक बार कहा था था ‘ अरब देशों में हमारे कई सूत्र हैं क्योंकि अरब लोग एक दूसरे से ही नफरत करते हैं. ऐसे में हमसे हाथ मिलाकर वो सोचते हैं कि वो इजराइल से ज्यादा अपने ही देश की मदद कर रहे हैं’
यही तर्क पाकिस्तान पर भी लागू होता है. पाकिस्तान में अपने ही लोगों के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है कि वो पाकिस्तानी सेना और सरकार से नफरत करते हैं.