नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू एवं कश्मीर पुनर्वास अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिका पर जल्द सुनवाई से इंकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा अभी इस मामले के लिए बेंच का गठन नहीं किया जा सकता है.
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि जम्मू एवं कश्मीर पुनर्वास अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिका को संविधान पीठ को सौंपी जा सकती है. कोर्ट ने कहा कि संविधान की विवेचना की जरूरत वाले कुछ मुद्दे सामने आते हैं तो उस स्थिति में यह कदम उठाया जाएगा.
यह अधिनियम भारत विभाजन के समय जम्मू एवं कश्मीर से पाकिस्तान चले गए पाकिस्तानी नागरिकों को पुनर्वास की अनुमति देने पर विचार करने की शक्ति प्रदान करता है. यह अधिनियम 1947 और 1954 के बीच विस्थापित होने वालों से जुड़ा है.
यदि कार्यवाही के दौरान यदि कोई भी संवैधानिक मुद्दा शामिल नहीं पाया गया तो पीठ अपना आदेश पारित करेगी. सुनवाई कर रही पीठ में जस्टिस प्रफुल्ल सी पंत और एएम खानवीलकर भी शामिल हैं. पीठ को सूचित किया गया कि इससे पूर्व सुनवाई कर रही पीठ ने इसे पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेज दिया था. इसके बाद पीठ ने अपनी राय दी.
जम्मू एवं कश्मीर नेशनल पैंथर पार्टी (जेकेएनपीपी) के अध्यक्ष और वरिष्ठ वकील भीम सिंह ने कहा कि अंतिम रूप से मामले की सुनवाई अदालत में ही होनी चाहिए. उन्होंने बताया कि वर्ष 2008 में एक खंडपीठ ने मामले को एक संविधान पीठ की सूची में शामिल करने का निर्देश दिया था. उसी वर्ष चीफ जस्टिस ने इस फैसले को दरकिनार करते हुए तीन सदस्यीय पीठ की सूची में डालने का आदेश दिया था.
सिंह ने कहा कि जम्मू एवं कश्मीर के जो लोग 1947 के बाद पाकिस्तान चले गए हैं उनकी वापसी पर तो विचार किया जा सकता है, लेकिन उनके वंशजों को वापस नहीं लिया जा सकता है. उन्होंने कहा कि विधानसभा द्वारा पारित कानून कठोर, असंवैधानिक और अनुचित है क्योंकि यह राज्य की सुरक्षा पर खतरा है.