नई दिल्ली: यूपी का इफेक्ट दिल्ली के आसपास भी नजर आने लगा है. गुरुग्राम में शिवसेना कार्यकर्ताओं ने सभी मीट दुकानों को नवरात्रि तक के लिए बंद करा दिया. हालांकि जिस समय शिवसैनिक गुरुग्राम में चिकन-मीट की दुकानों को बंद करा रहे थे. लगभग उसी समय मुंबई में शिवसेना के नेतृत्व वाली बीएमसी के बजट में देवनार बूचड़खाने को 57 करोड़ रुपए देने का ऐलान किया गया.
अचानक एक्शन में शिवसेना
गुरुग्राम में शिवसेना के कार्यकर्ता अचानक एक्शन में नजर आए. बारी-बारी से शिवसैनिक शहर की मीट और चिकन की दुकानों पर गए और उन्हें दुकान बंद करने को कहा. शिवसैनिकों ने KFC जैसे फूड चेन आउटलेट को भी नहीं बख्शा. उन्होंने ग्राहकों को बाहर निकाल कर उसे भी जबरन बंद करा दिया. यही नहीं मंगलवार को मीट की दुकानें बंद रखने का फरमान भी सुना दिया.
मंगलवार को मीट शॉप बंद करो !
शिवसेना कार्यकर्ता ऋतुराज ने कहा, ‘देश में बड़ी संख्या में हिंदू धर्म के लोग नवरात्र और हर सत्ताह मंगलवार को व्रत रखते हैं. ऐसे में इन दिनों में मीट बिकना और परोसा जाना ठीक नहीं है. ज्यादातर दुकानदारों ने हमारा साथ दिया और अपनी दुकानें बंद कर लीं. इसके अलावा जो दुकानदार राजी नहीं थे, उन्हें भी समझा-बुझाकर दुकानें बंद कराईं गई.’
शिवसेना का दोहरा रवैया !
हैरानी की बात ये है कि इस बार के बीएमसी बजट में शिक्षा का बजट 83 करोड़ कम कर दिया गया है. पिछली बार शिक्षा के लिए तेईस सौ चौरानवे करोड़ का बजट रखा गया था. जबकि इस बार शिक्षा के लिए तेईस सौ ग्यारह करोड़ रुपए का बजट तय किया गया है. वहीं,दूसरी तरह देवनार बूचड़खाने के लिए बीएमसी ने 57 करोड़ रुपए दिए हैं.
पिछले साल देवनार बूचड़खाने को आधुनिक बनाने के लिए एक हजार 66 करोड़ खर्च करने की मंजूरी दी गई थी. बीएमसी की देखरेख में चलने वाले देवनार बूचड़खाने में हर रोज 6 हजार पशु काटे जाते हैं. आंकड़ों के मुताबिक यहां हर रोज 10 से 15 करोड़ का मांस बिकता है. यहां से मांस का एक्सपोर्ट यूएई और ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों में होता है.
अंदर की बात
अंदर की बात ये है कि जीएसटी लागू होने के बाद बीएमसी को ये आशंका है कि कहीं ऑक्ट्रॉय यानी चुंगी से होने वाली करीब 4 हजार करोड़ की आमदनी बंद ना हो जाए. इसलिए बीएमसी अब खर्चा घटाने और आमदनी बढ़ाने के तरीके ढूंढ रही है. इसीलिए बीएमसी का शिक्षा बजट कम किया गया है और बीएमसी के बूचड़खाने का बजट बढ़ाया गया है. रहा सवाल गुड़गांव में मीट की दुकानों के खिलाफ शिवसेना के आंदोलन का, तो महाराष्ट्र के बाहर ज्यादातर राज्यों में शिवसेना की इकाइयां मनमाने फैसले ही करती हैं.