बुलंदशहर गैंगरेप केस : 20 अप्रैल को SC में अगली सुनवाई

नई दिल्ली : बुलंदशहर गैंगरेप मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कई बडे संवैधानिक सवाल उठाए. कोर्ट ने कहा कि महिलाओं से रेप के मामले में ओहदे पर बैठे लोगों के द्वारा बयानबाजी पीडिता महिला के संविधान के दिए फ्री एंड फेयर ट्रायल का हनन है. क्योंकि इससे जांच प्रभावित हो सकती है.
कोर्ट ने कहा कि देश के संविधान ने महिलाओं को समान अधिकार, अलग पहचान और गरिमापूर्व जीवन जीने के अधिकार दिए हैं. ऐसे में किसी रेप पीडित महिला के खिलाफ ओहदे पर बैठे व्यक्ति की बयानबाजी महिला के गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार को ठेस पहुंचाती है.
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या रेप जैसे गंभीर अपराध को पब्लिक आफिस में बैठा व्यक्ति राजनीतिक साजिश करार दे सकता है? संविधान द्वारा दिया गया कोई भी मौलिक अधिकार संपूर्ण नहीं क्योंकि से कानून नियंत्रित है. ऐसे में कोई भी शख्स ये नहीं कह सकता है रेप जैसे मामलों में ऐसी बयानबाजी बोलने के अधिकार के मौलिक अधिकार के दायरे में आता है.
कोर्ट ने आगे कहा कि यहां मामला सिर्फ किसी की बोलने की आजादी का अधिकार का नहीं बल्कि पीडिता के कानून के समक्ष समान संरक्षण और फ्री एंड फेयर ट्रायल के अधिकार का भी है. अगर आरोपी ये कहता है कि उसे साजिश के तहत फंसाया गया तो बात दूसरी है लेकिन कोई डीजीपी कहता है कि पीडिता झूठी है तो पुलिस मामले की क्या जांच करेगी? यहां सवाल ये है कि ओहदे पर बैठे व्यक्ति के इस तरह बयानबाजी भले ही कोई अपराध के दायरे में ना हो लेकिन वो संविधान में दिए गए नैतिकता और शिष्टाचार के दायरे में भी आता है.
वहीं केंद्र सरकार की ओर से इसका विरोध किया गया. केंद्र सरकार की ओर से AG मुकुल रोहतगी ने कहा इसे लेकर कोई कानून नहीं है. इस तरह कोर्ट मोरल कोड आफ कंडक्ट नहीं बना सकता. हालांकि कोई इस तरह की बयानबाजी करता है तो ट्रायल कोर्ट उसपर अवमानना की कारवाई कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फली नरीमन के साथ साथ हरीश साल्वे को भी कोर्ट की सहयोग करने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 20 अप्रैल को होगी.
सुप्रीम कोर्ट बुलंदशहर गैंगरेप मामले की सुनवाई कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने मां बेटी से गैंगरेप के मामले की जांच कर रही सीबीआई को जल्द जांच पूरी करने को कहा था. वहीं पिछले 15 दिसंबर को बुलंदशहर गैंगरेप मामले में यूपी के मंत्री आजम खान के पछतावे वाले माफीनामे को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था.
माफीनामे में रिमोर्स यानि पछतावा शब्द का इस्तेमाल किया गया था. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ये बिना शर्त माफीनामा से भी ऊपर का माफीनामा है. उसके पहले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामा को सुप्रीम कोर्ट ने बिना शर्त माफीनामा स्वीकार करने से इनकार कर दिया था.
कोर्ट ने आजम खान को निर्देश दिया था कि वे नया हलफनामा दायर करें. आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद आजम खान सुप्रीम कोर्ट में अपने बयान को लेकर बिना शर्त माफी मांगने को तैयार हुए थे.
इस मामले में एमिकस क्युरी फाली एस नरीमन ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को उन मंत्रियों के व्यवहार और कर्तव्यों पर एक दिशानिर्देश जारी करना चाहिए जो किसी भी तरह का सार्वजनिक बयान दे देते हैं.
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