नई दिल्ली. मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले के लिए सात जुलाई खास अहमियत रखती है. दो साल पहले इसी दिन 2013 में फर्जीवाड़े पर से पर्दा उठा था और पहली प्राथमिकी दर्ज हुई थी. ठीक दो वर्ष बाद इसी दिन 2015 को सरकार ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) से मामले की जांच कराने पर सहमति जताई और हाईकोर्ट को इस बाबत पत्र लिखा है.
क्या है कहानी
व्यापमं द्वारा आयोजित की जाने वाली पीएमटी परीक्षा में हुई गड़बड़ियों के संबंध में पहली बड़ी कार्रवाई इंदौर की अपराध शाखा ने सात जुलाई, 2013 को की थी और फर्जी तरीके से परीक्षा देने वाले 20 से ज्यादा लोगों को दबोचा था. उसके बाद इंदौर में ही इस फर्जीवाड़े का मास्टर माइंड डॉ. जगदीश सागर पकड़ा गया. व्यापमं मामले की अन्य परीक्षाओं में गड़बड़ी का खुलासा होने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस मामले की जांच का जिम्मा एसटीएफ को सौंप दिया.
उसके बाद हाईकोर्ट ने पूर्व न्यायाधीश चंद्रेश भूषण की अध्यक्षता में एसआईटी गठित की. एसटीएफ अबतक 21 सौ लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है. वहीं कथित तौर पर इससे जुड़े 48 लोगों की मौत हो चुकी है. दो साल पहले इस मामले का खुलासा होने के बाद से कांग्रेस लगातार सीबीआई जांच की मांग करती आ रही है. मुख्यमंत्री चौहान इससे बचते रहे हैं लेकिन मंगलवार को वह सीबीआई जांच पर सहमत हो गए.
सात जुलाई, 2013 को जहां व्यापमं घोटाले का खुलासा हुआ था, वहीं दो वर्ष बाद सात जुलाई, 2015 को सीबीआई जांच के लिए हाईकोर्ट को पत्र लिखा गया है. राज्य में व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) वह संस्था है जो इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज में दाखिले से लेकर वे सभी भर्ती परीक्षाएं आयोजित करता है, जो मप्र लोक सेवा आयोग आयोजित नहीं करता है. मसलन पुलिस उपनिरीक्षक, आरक्षक, रेंजर, शिक्षक आदि.
IANS इनपुट भी
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