नई दिल्ली : मां गंगा में डुबकी भर लगा लेने भर से मोक्ष मिल जाता है, शायद इसलिए इंसानों के बीच इसे सबसे बड़ा ओहदा मिला है गंगा मैया का. हाल ही में देश की एक अदालत ने कल-कल बहती इस धारा को कानूनी तौर पर इंसान माना है.
जी हां, चौंकिए मत ये सच है जैसे आप और हम इंसान है वैसे ही गंगा-यमुना को भी इंसान माना गया है. ये जीवित हैं इनमें प्राण है. इनकी सांसे चलती है लिहाजा सलूक में भेदभाव न हो. इसी बात को लेकर अदालत ने ये हिदायत दी है. अब आपके जहन में एक सवाल ये उभर रहा होगा की इसे पुरुष का या महिला किसका दर्जा दिया गया है.
तो हम आपको बता दें की अदालत इस बात में उलझना नहीं चाहती है, लेकिन अब एक इंसान की तरह ही गंगा मैया को भी एक आम नागरिक जैसे ही सभी अधिकार मिलेंगे. मतलब कहीं न कहीं ये मान लिया गया है कि गंगा बोलती है, बतियाती है…वो सोती है…जागती है…हंसती है…गुनगुनाती है…गुस्साती है…इठलाती है.
गौरतलब है की दो दशक पहले की बात है जब बी आर फिल्म्स के टीवी धारावाहिक महाभारत के शुरुआती दिनों में जब भीष्म और गंगा का संवाद दिखाया जाता था तो लोग हर-हर गंगे का नारा लगाने लगते थे. अब कोर्ट ने भी कह दिया हर-हर गंगे। अदालत ने कहा है की जैसे गंगा इंसान की तरह है उसी तरह यमुना भी इंसान की तरह है, इसलिए दोनों को वो सभी अधिकार मिलने चाहिए जो एक इंसान को मिलते हैं. वीडियो में देखें पूरा शो.