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इन नेताओं ने तय किया संन्यास से राजनीति तक का सफर

लोग राजनीति से संन्यास लेकर किनारे हो जाते हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सन्यास लेकर राजनीति में आते हैं. उमा भारती से लेकर, योगी आदित्यानाथ, साध्वी निरंजन ज्योति से साक्षी महाराज वो चेहरे हैं, जिनके कपड़ों का भगवा रंग उनकी राजनीति की पहचान बन गया.

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  • March 21, 2017 3:30 pm Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
नई दिल्ली : लोग राजनीति से संन्यास लेकर किनारे हो जाते हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सन्यास लेकर राजनीति में आते हैं. उमा भारती से लेकर, योगी आदित्यानाथ, साध्वी निरंजन ज्योति से साक्षी महाराज वो चेहरे हैं, जिनके कपड़ों का भगवा रंग उनकी राजनीति की पहचान बन गया. 
 
जिंदगी का सब कुछ त्याग कर भी राजनीति ने उन्हें जिंदगी का हर सुख दे दिया. पहचान, पैसा, शानो-शौकत, ऊंचे ओहदे वो सबकुछ जिनके बारे में एक संन्यासी सोच भी नहीं सकता. लेकिन, उसी संन्यास ने उन्हें सब कुछ दे दिया.
 
योगी आदित्यनाथ
देश के सबसे बड़े सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ. 1994 से पूर्ण सन्यासी 1998 से लोकसभा सांसद. यानी महज चार साल में सबसे बड़े लोकतंत्र में अपनी पैठ बनानी शुरु कर दी. लोकसभा में जीत का सिलसिला कभी नहीं थमा. लगातार सांसद रहे और अब उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं.
 
 
उमा भारती
साध्वी उमा भारती के नाम से विख्यात हैं. संन्यासी के सादे जीवन से आगे बढ़ने वाली उमा भारती पहली बार 1989 में लोकसभा के लिए चुनी गईं. इसके बाद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर केंद्र में कैबिनेट मिनिस्टर तक उमा का कद बढ़ता चला गया. आज भी उनकी पहचान भगवा रंग ही है.
 
साध्वी निरंजन ज्योति
गेरुआ रंग से राजनीति में चमकी साध्वी निरंजन ज्योति ने उत्तर प्रदेश विधानसभा से अपना राजनीतिक करियर शुरू किया. साध्वी आज फतेहपुर से सांसद हैं और केंद्रीय मंत्री के तौर पर काम कर रही हैं.
 
साक्षी महाराज
तन पर गेरुआ वस्त्र और बयानों में विवाद ये पहचान है बीजेपी सांसद साक्षी महाराज की. 1991 में लोकसभा में पहली बार पहुंचे और आज उन्नाव की जनता के प्रतिनिध की तौर पर हैं. हर मुद्दे पर बेबाक राय साक्षी महाराज की पहचान है.
 
 
संन्यायी कहें या वैरागी, जिंदगी का ऐसा पड़ाव जहां इंसान सांसारिक मोहमाया छोड़कर पूरी तरह से ईश्वर में लीन हो जाता है. उसकी दुनिया उसके भगवान तक सीमित हो जाती है, घर-परिवार, मोह-माया काम, क्रोध, मद, लोभ सबसे ऊपर उठकर वो सिर्फ ईश्वर को देखता है. लेकिन, क्या संन्यास की परिभाषा बदल गई है, ये जरुर बहस का मुद्दा बन गया है.

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