नई दिल्ली: कांग्रेस पार्टी को यूपी और उत्तराखंड में मिली करारी हार से पॉलीटिकल स्ट्रैटिजिस्ट प्रशांत किशोर की छवि को भी गहरा धक्का लगा है. चुनाव जीताने में माहिर माने जाने वाले प्रशांत किशोर इस बार यूपी और उत्तराखंड में कांग्रेस को बचा नहीं पाए. आपको याद दिला दें कि लोकसभा में बीजेपी को मिली प्रचंड जीत का सेहरा प्रशांत किशोर के सिर बंधा था. यही वजह है कि नीतीश कुमार ने भी बिहार विधानसभा चुनावों में प्रशांत किशोर की सेवाएं ली. इस बार यूपी और उत्तराखंड के गढ़ को बचाने के लिए भी कांग्रेस ने प्रशांत किशोर का सहारा लिया था लेकिन दोनों ही जगह कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा.
हालांकि पंजाब के नतीजे प्रशांत किशोर के लिए डैमेज कंट्रोल की तरह है जहां कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई है लेकिन इतना तय है कि प्रशांत किशोर अब लगातार सवालों के घेरे में रहेंगे.
काम नहीं आया हरीश रावत का च्यवनप्राश
गौरतलब है कि कांग्रेस नेता हरीश रावत ने चुनाव से पहले प्रशांत किशोर को अपना च्यवनप्राश करार दिया था. उन्हें उम्मीद थी कि प्रशांत किशोर उत्तराखंड में फिर एक बार किंग मेकर की भूमिका निभाएंगे. लेकिन हालत ये हुई कि हरीश रावत जो खुद दो सीटों पर चुनाव लड़ रहे थे, दोनों जगहों से हार गए. दूसरी तरफ यूपी में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस 50 का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई.
क्या सिर्फ मजबूत पार्टी को ही जिता सकते हैं प्रशांत?
यूपी और उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के परिणाम सामने आने के बाद बड़ा सवाल ये खड़ा हो रहा है कि क्या प्रशांत किशोर सिर्फ मजबूत पार्टी को ही जिता सकते हैं. 2014 में बीजेपी की लहर थी वहीं बिहार में भी नीतीश कुमार मजबूत स्थिति में थे. यूपी और उत्तारखंड में प्रशांत किशोर की अग्नि परीक्षा थी लेकिन यहां उनकी स्ट्रैटिजी पूरी तरफ फ्लाप रही. पंजाब की बात करें तो यहां अकाली दल और बीजेपी के लिए एंटी इनकमबेंसी थी इसलिए यहां भी जीत का सेहरा प्रशांत किशोर के सिर बांधना पूरी तरह सही नहीं होगा.