लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (BSP) को लेकर तकरीबन सारे ही एग्जिट पोल बता रहे हैं कि वो सत्ता की रेस से बाहर है. लेकिन त्रिशंकु विधानसभा होने की सूरत में बीएसपी का रोल बेहद अहम हो सकता है. अखिलेश यादव ने संकेत दिए हैं कि वह बीएसपी के साथ भी गठबंधन कर सकते हैं.
बीबीसी हिंदी को दिए इंटरव्यू में अखिलेश यादव ने गठबंधन के सवाल पर कहा कि वो नहीं चाहते कि बीजेपी रिमोट कंट्रोल से बीजेपी को चलाए और ना ही ये चाहते हैं कि यूपी में राष्ट्रपति शासन लगे. उन्होंने कहा यूपी में राष्ट्रपति शासन लगने से पहले वो बीएसपी से हाथ मिलाना पसंद करेंगे.
‘भतीजे’ के संकेतों पर बुआजी ने चुप्पी साध रखी है. बीएसपी को नतीजों का इंतजार है. एग्जिट पोल की बात करें तो इंडिया न्यूज़-MRC ने 403 सदस्यों वाली विधानसभा में मायावती की पार्टी को 90 सीटें मिलने का अनुमान लगाया है. एबीपी-सीएसडीएस ने 60 से 72 सीटों का, टाइम्स नाउ-VMR ने 57 से 74 सीटों का, न्यूज 24 – टुडेज चाणक्या ने महज 27 सीटों का और इंडिया टुडे-एक्सिस ने 28 से 42 सीटें मिलने का अनुमान लगाया है. इनका औसत निकालें तो भी बीएसपी को 57 सीटें ही मिलती दिख रही हैं. हालांकि, बीएसपी इन तमाम एग्जिट पोल को गलत ठहरा रही है.
यूपी में BSP के लिए संकेत
एग्जिट पोल के नतीजों पर यकीन करें तो मायावती का जादू इन चुनावों में भी नहीं चला. पिछले चुनावों में बीएसपी को कुल 26 प्रतिशत वोट मिले थे और उसके 80 विधायक चुनकर आए थे. इस बार एग्जिट पोल के मुताबिक बीएसपी को 22 फीसदी वोट मिलता दिख रहा है. अगर एग्जिट पोल के नतीजे सही साबित हुए तो साफ हो जाएगा कि मायावती का दलित-मुस्लिम फॉर्मूला फेल हो गया. बीएसपी ने 97 मुस्लिमों को टिकट दिया था लेकिन मुस्लिम वोट एसपी-कांग्रेस गठबंधन और बीएसपी के बीच बंटता दिख रहा है. वहीं, बीजेपी उसके गैर-जाटव दलित वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब होती दिख रही है.
अंदर की बात
अंदर की बात ये है कि सभी एग्जिट पोल में बीएसपी को तीसरे नंबर पर दिखाया जा रहा है और कहा जा रहा है कि त्रिशंकु विधानसभा की हालत में मायावती किंगमेकर हो सकती हैं, लेकिन मायावती की राजनीति अब तक राज करने की रही है. 1996 में सिर्फ 67 सीटें जीतने के बावजूद उन्होंने 174 विधायकों वाली बीजेपी को मजबूर किया था कि बीजेपी उनको सीएम बनाए. इसलिए अगर मायावती के हाथ में इस बार भी सत्ता की चाबी आई तो वो अपनी सरकार बनाने के लिए ही दबाव बनाएंगी. अगर ऐसा नहीं हुआ और बीएसपी का ग्राफ 50 सीटों से नीचे पहुंचा तो मायावती के लिए बीएसपी को टूटने से बचाना और अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित रखना आसान नहीं होगा.