UP में नेताओं ने तोड़े रैलियों के रिकॉर्ड, अखिलेश ने 221 तो मोदी ने कीं…

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में सातवें और अंतिम दौर की वोटिंग कल यानी बुधवार को होगी. करीब डेढ़ महीने तक चले चुनाव प्रचार के दौरान अलग-अलग दलों के नेताओं ने रैलियों का रिकॉर्ड बना लिया. इन सबके बावजूद तस्वीर साफ नहीं है और किसकी जीत होगी ये 11 मार्च को ही पता चलेगा.
अखिलेश ने कीं 221 रैलियां
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हों या फिर सीएम अखिलेश यादव, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी या फिर बसपा सुप्रीमो मायावती यूपी के चुनावी रण में वोटरों को लुभाने में किसी भी नेता ने कोई कसर नहीं छोड़ी. यूपी के अलग-अलग इलाकों में उड़नखटोलों के जरिए ताबड़तोड़ रैलियां करने में कोई भी पार्टी किसी से पीछे नहीं रही. हालांकि सबसे ज्यादा भाग-दौड़ सीएम अखिलेश यादव ने की. पूरे यूपी में अखिलेश ने कुल 221 रैलियां की. पीएम मोदी ने यूपी चुनाव के लिए कुल 23 रैलियां की.
मायावती ने कीं 52 सभाएं
बीएसपी सुप्रीमो मायावती भी प्रचार के मामले में किसी से कम नहीं रहीं, उन्होंने कुल 52 सभाएं कीं. इसी तरह कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कुल 45 जनसभाएं कीं. हालांकि यूपी की सियासत के दिग्गज खिलाड़ी मुलायम सिंह यादव का चुनाव प्रचार से लगभग दूर रहना सबको हैरान कर रहा है. पूरे चुनाव के दौरान मुलायम ने सिर्फ 4 जनसभाएं की. पिछले विधानसभा चुनाव में मुलायम ने अकेले 300 से ज्यादा सभाएं की थीं.
नेताजी की तूफानी रैलियां !
सीएम अखिलेश यादव ने अपने चुनावी अभियान की शुरुआत 24 जनवरी को सुल्तानपुर से की थी. बीच में चार दिनों को छोड़कर अखिलेश यादव ने अब तक हर दिन औसतन सात सभाएं की. अखिलेश ने पिछले 42 दिनों में 221 रैलियां की. अखिलेश ने हर दिन करीब ढाई से तीन घंटे का वक्त हवा में ही अपने हेलिकॉप्टर या प्राइवेट प्लेन में गुजारा.
पीएम मोदी ने 11 जिलों में एक-एक सभा की, जबकि 6 जिलों में उन्होंने दो-दो जगहों पर सभाएं की. यूपी के सीएम रह चुके केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने 102 रैलियों को संबोधित किया और करीब 20 हजार किलोमीटर की यात्रा की.
मायावती ने कुल 52 सभाएं की और 55 घंटे हवा में गुजारे. एक या दो दिन छोड़ दें तो हर दिन मायावती ने औसतन दो सभाएं की. यानी एक फरवरी से शुरू करके उन्होंने करीब 27 दिन तक हर दिन औसतन दो घंटे हवा में गुजारे.
अंदर की बात
अंदर की बात ये है कि यूपी में ना तो सत्ता विरोधी लहर पैदा हो पाई, ना विकास के नाम पर वोटरों को रिझाया जा सका और ना ही ध्रुवीकरण की कोशिशें ही रंग लाईं. इसलिए सभी पार्टियों ने अपने-अपने परंपरागत वोट बैंक को साधने के लिए धुआंधार रैलियां कीं, ताकि माहौल बने और कम से कम उनके समर्थक वोटर घरों से बाहर निकल कर बूथ तक जाएं.
राजनीतिक दलों के लिए परेशानी की बात ये है कि यूपी में उतनी बंपर वोटिंग नहीं हुई, जितनी उम्मीद थी. इसलिए माना जा रहा है कि ज्यादातर सीटों पर जीत-हार का अंतर बहुत कम होगा, इसलिए एक-एक सीट पर सभी दलों ने पूरा ज़ोर लगा दिया है.
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