UP का ये गांव चुनाव में नहीं दे सकता वोट, नेता भी रहते हैं दूर

गोरखपुर: आजादी के बाद भी यूपी के एक गांव ऐसा भी है जहां रहने वाले लोगों के पास आज भी वोटर आईकार्ड भी नहीं है. ये गांव गोरखपुर से महज 10 किमी दूर वनटांगिया काा गांव आम बस्ती है, लेकिन इस गांव में रहने वाले ग्रामीणों का दुर्भाग्य है कि आजादी के 70 साल के बाद भी इनके लिये इसके कोई मायने नहीं है क्यों कि विकास नाम की चीज इनसे कोसों दूर है और आज तक इनका वोटर आई कार्ड भी नही बना है.
 
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भारतीय नागरिक सिद्ध करने का कोई प्रमाण नहीं
वोटर कार्ड न होने की वजह से इस गांव में लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व यानी चुनाव के दौरान गली-गली, घर-घर जाने वाले नेता इनके यहां आज तक नही झांके. इस गांव में दलित वर्ग के 103 साल के  बसंत कुमार है, यहां अपनी हमउम्र पत्नी के साथ रहने को मजबूर हैं. उम्र का एक शतक बीतने के बाद भी ये अपने को भारतीय नागरिक सिद्ध करने का कोई प्रमाण नहीं दे सकते.
 
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खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं दलित परिवार 
इसके साथ ही बसंत कुमार खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं लेकिन दलितों और पिछड़ों के लिये काम करने वाली उत्तम प्रदेश बनाने वाली सरकार को इनकी कोई परवाह नही है. गोरखपुर के आस पास ऐसे करीब 23 वनटांगिया गांव हैं. वनटांगियों को अंग्रेजी हुकुमत करीब 97 साल पहले जंगलों में शीशम, सागौन के पौधे लगाने के लिये जंगल में ले गई थी.
 
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विकास के नाम पर यहां कुछ नहीं हुआ
उस समय अंग्रेजों ने टोंगिया विधि से  शाल, शीशम के जंगल तैयार कराने का निर्णय लिया था. ये लोग एक जगह पौधे रोपते थे और उनकी देख रेख करते थे. पौधों के बड़े होने पर इन लोगों को दूसरी जगह भेज दिया जाता था. दलित और अतिपिछड़े वर्ग के ये लोग तभी से जंगल में ही रह गए और तब से लेकर अब तक ये अपनी पहचान के लिये तरस रहे हैं, संघर्ष कर रहे हैं. लेकिन अभी तक न इनको पहचान मिली और न विकास नाम की चिड़िया के दर्शन हुए.
 
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न कोई स्कूल है न कोई स्वास्थय केंद्र
इन वनटांगिया गांवों में दूर दूर तक कोई स्कूल नही है और न ही कोई स्वास्थ्य केन्द्र. इस गांव में मूलभूत सुविधाओं की बात करना ही शायद बेमानी होगा. मतदाता सूची में नाम न होने के कारण केन्द्र और राज्य सरकार की कोई भी योजना यहां तक पहुंचती नही है. जिसके कारण रोजगार के लिये इनको मजदूरी के लिये दर-दर भटकने को मजबूर होना पड़ता है. 
 
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सरकार नहीं देती कोई भाव
लंबे संघर्ष के बाद इनको 2015 में तो पंचायत चुनाव में वोट डालने का अधिकार मिला लेकिन इसके बाबजूद अभी तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव में की वोटर लिस्ट में इनका नाम नही है. जिसके चलते इस बार भी ये लोकतंत्र के पर्व में हिस्सा लेने से वचिंत रह जायेगें और विकास से भी. क्योंकि बिना वोट के कोई भी सरकार इनको भाव नही देगी. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि विकास के नाम पर चुनाव लड़ने वाली सरकार कब तक ऐसे वचिंतों से मुंह मोड़ती रहेगी और कब तक ऐसे वंचित अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते रहेंगे.

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