नई दिल्ली. देश में इस समय बोलने की आजादी के नाम पर बहस छिड़ी हुई है. जेएनयू में लगे कथित तौर पर देश विरोधी नारे और उसके बाद रामजस कॉलेज में हुए विवाद के बाद से इस बात की बार-बार दलील दी जा रही है कि संविधान में ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का अधिकार दिया गया है.
इसकी आड़ में चाहे वामपंथी संगठन हों या फिर एबीवीपी दोनों को ही हर रोज हंगामा खड़ा कर देते हैं. इस बहस में नेता से लेकर अभिनेता भी कूद चुके हैं.
हालांकि यह पहला मामला नहीं है इससे पहले भी विवादित किताबों, फिल्मों, कपड़ों और पेंटिग को लेकर भी इस तरह का विवाद हो चुका है.
इन मामलों में भी संविधान के मूलभूत अधिकार के तहत आने वाले आजादी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ही हवाला देकर लोगों ने खुद को बचाने की कोशिश है कि हालांकि कुछ मामलों में इसमें वैचारिक मतभेद भी देखे गए हैं.
क्या हैं संविधान की ओर से मिले आम नागरिकों के मूलभूत अधिकार
1. समता या समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18)
2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22)
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24)
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28)
5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30)
6. संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 32)
क्या है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार
संविधान के अनुच्छेद 19 से 22 तक स्वतंत्रता का अधिकार के बारे में बताया गया है. अभिव्यक्ति की आजादी इसी के अंतर्गत आता है. अनुच्छेद नुच्छेद -19(1)(क) में भारत के हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है.
इस अधिकार के तहत नागरिक अपनी बात कह सकता है. इसी अनुच्छेद 19(1)(क) की आड़ में कुछ लोग देश विरोधी नारे, दूसरों की भावनाएं आहत करने से भी नहीं चूकते हैं.
जब उनका विरोध किया जाता है तो वह यह बात कहने से नहीं चूकते हैं कि उन्हें अपनी बात कहने का संवैधानिक अधिकार मिला हुआ है.
लेकिन अनुच्छेद 19 (2) भी है
लेकिन इसके आगे संविधान के अनुच्छेद 19 (2) में बोलने की आजादी के अधिकार की कुछ सीमाएं भी तय की गई हैं.
जिसके मुताबिक देश की सुरक्षा, देश की अखंडता और संप्रभुता को चुनौती, जानबूझकर न्यायाधीशों पर पक्षपात का आरोप, मित्रों देशों के खिलाफ, किसी की मानहानि, किसी को अपराध करने के लिए उकसाने जैसे मामले पाए जाने पर देश के कानून के अधिकार है कि वह कार्रवाई करे.