गोधरा कांड के 15 साल : 59 कारसेवकों के परिवारों में बस सन्नाटा, सवाल और सिसकियां

अहमदाबाद.  27 फरवरी 2002 को हुए गोधरा कांड की बरसी मौके पर इस कांड में मारे गए लोगों के परिजनों की आंखें कई सवाल पूछ रही हैं. घटना के 15 साल बीत चुके हैं. इस घटना के बाद पूरे गुजरात में दंगा हुआ था.
कई लोग मार दिए गए लेकिन राजनेताओं ने खूब रोटियां सेंकी. कुछ लोगों को सजा मिली. लेकिन सन्नाटा और सवाल आज भी कुछ घरों में तैर रहे हैं.
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में 70 साल के सरदार मगन वघेला को यकीन है कि गोधरा स्टेशन में साबरमती एक्सप्रेस की बोगी में हुई आगजनी की घटना में मारे गए उनके बेटे की बलिदान खाली नहीं जाएगी.
अखबार के मुताबिक बघेला कहते हैं ‘ वह (बेटा) राम के मंदिर की खातिर अयोध्या गया था. देर सही मंदिर तो बनेगा ही. बघेला की माली हालत बहुत अच्छी नही है. घर के नाम पर उनके नाम पर एक कमरा और बालकनी है.
बघेला के 26 साल के बेटे राजेश उन 59 कारसेवकों में शामिल थे जिनकी मौत साबरमती ट्रेन में हुए अग्निकांड में हो गई थी.
बीते 15 सालों से बघेला इलाके में बनी टेक्सटाइल में नौकरी कर रहे हैं. इस घटना के बाद से मगन बघेला के अंदर नफरत की आग जल रही है और वह विश्व हिंदू परिषद के कट्टर समर्थक हैं.
वह खुलकर कहते हैं कि वीएचपी की प्रचार सभा के सदस्य हैं और जगह-जगह घूमकर उनके बेटे के साथ हुई घटना के बारे में बताते हैं. बघेला कहते हैं कि वह लोगों को बताते हैं कि कैसे उनके बेटे राम मंदिर के लिए बलिदान दिया था.
अपने बेटे राजेश को याद करते हुए हैं कि वह राजेश की मौत के बाद से बर्बाद हो गए हैं. वह पूरी तरह से उसी पर निर्भर थे.
उनका एक और बेटा है जो उनसे अलग हो गया है. उन्होंने बताया कि उनको 4 लाख रुपए सरकार की ओर से मिले थे लेकिन उसमे ज्यादातक हिस्सा राजेश की पत्नी ने ले लिया और वह भी छोड़कर चली गई.
घटना के समय राजेश का बेटा जतिन 5 साल का था अब मगन सिंह बघेला उसे राजेश की पत्नी से वापस लेने की लड़ाई लड़ रहे हैं.
वहीं जतिन का कहना है ‘मुझे गोधरा कांड के बारे में ज्यादा याद नहीं है. मेरा बचपन बहुत ही उतार-चढ़ाव में बीता है. मैं अपनी पढ़ाई भी ठीक से नहीं कर पाया.
आपको बता दें कि जतिन इस एक पान की दुकान में नौकरी करता है जहां 4 हजार रुपए महीने उसे दिए जाते हैं.
मगन बघेला कहते हैं कि खोंखरा इलाके में साल एक बार इस घटना में मारे गए लोगों को याद करते हैं. लेकिन इस बात का दुख भी होता है कि आज तक राम मंदिर नहीं बन पाया है.
ऐसी 38 साल की नेहा जो वस्त्राल इलाके में रहती हैं. उनके साथ उनकी बूढ़ी मां भी रहती हैं जो बीमारियों से ग्रसित हैं.
नेहा बताती हैं कि उनकी मां ने पिता और बेटे की मौत का गम झेला है. उनके पिता का नाम मनसुख भाई सोनी (62) और भाई जेशल (24) इस घटना में जिंदा जला दिए गए थे.
नेहा की बेटी विश्वा और बेटा धारिया 12 वीं और 10 वीं के छात्र हैं. वह इस घटना के बारे में जानते हैं कि उनके नाना और मामा के साथ क्या हुआ था.
( हेडलाइन को छोड़कर इस खबर को इंडियन एक्सप्रेस से अनुवाद किया गया है)
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