बीएमसी का शासन चलाने के लिए शिवसेना और बीजेपी के साथ आने पर अब भी सस्पेंस बना हुआ है. लेकिन आंकड़ों का गणित ऐसा है कि मजबूरी में शिवसेना और बीजेपी एक बार फिर हाथ मिला सकते हैं. मातोश्री पहुंचे नए पार्षदों से मिलते समय उद्धव के चेहरे पर जीत की खुशी नजर आई.
मुंबई: बीएमसी का शासन चलाने के लिए शिवसेना और बीजेपी के साथ आने पर अब भी सस्पेंस बना हुआ है. लेकिन आंकड़ों का गणित ऐसा है कि मजबूरी में शिवसेना और बीजेपी एक बार फिर हाथ मिला सकते हैं. मातोश्री पहुंचे नए पार्षदों से मिलते समय उद्धव के चेहरे पर जीत की खुशी नजर आई. लेकिन इस जश्न के बीच मुद्दे की बात यही है कि बीएमसी में शासन चलाने के लिए ज़रूरी आंकड़ा कैसे पूरा होगा.
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बीजेपी ही हो सकती है भरोसेमंद
227 सदस्यों वाली बीएमसी में जादुई आंकड़ा 114 का है. दो निर्दलियों के पार्टी में शामिल होने से शिवसेना का आंकड़ा 84 तक पहुंच गया. इसके बावजूद उसे अब भी 30 पार्षदों की ज़रूरत है. उद्धव के सामने कांग्रेस से हाथ मिलाने का विकल्प है. उनके सामने एनसीपी, एमएनएस और निर्दलियों का समर्थन लेने का विकल्प भी है. लेकिन 5 साल तक बीएमसी को चलाने के लिए सबसे भरोसेमंद साथ बीजेपी का ही हो सकता है.
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दोनों के बीच तल्खी नहीं हो रही है कम
राज्य में जहां फड़नवीस सरकार को शिवसेना का साथ लेना पड़ा है, उसी तरह शिवसेना को भी बीजेपी का साथ मजबूरी में लेना पड़ेगा. लेकिन दोनों के बीच तल्खी कम नहीं हो रही है. नतीजों के बाद भी शिवसेना की ओर से सामना में लिखा गया है कि लाख कोशिशों के बाद भी बीजेपी उसे हरा नहीं पाई.
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उद्धव कांग्रेस के साथ जाएंगे या बीजेपी के?
बीजेपी के लिए बीएमसी में सरकार बनाने का एक ही रास्ता है कि वो शिवसेना से हाथ मिला ले. लेकिन ये शिवसेना पर निर्भर करता है. जहां तक शिवसेना की बात है तो उसके पास दो बड़े विकल्प हैं. एक तो ये कि वो बीजेपी से हाथ मिला ले और दूसरा ये कि बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए कांग्रेस उसे बाहर से समर्थन कर दे. वैसे भी 2019 तक कांग्रेस और शिवसेना की सियासी दुश्मनी बीजेपी से ही है.
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बीजेपी के कमजोर पड़ने पर ही शिवेसना या फिर कांग्रेस मजबूत हो सकती है. अगर उद्धव ये फैसला कर लेते हैं तो ये महाराष्ट्र की सियासत को बिहार और यूपी की तरह ही बदल सकता है. बिहार मे नीतीश कुमार ने बीजेपी को छोड़ लालू का हाथ थाम लिया. वहीं यूपी में अखिलेश ने कांग्रेस से गठबंधन कर लिया.
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अंदर की बात
अंदर की बात ये है कि मुंबई महानगर पालिका में मेयर पद के लिए नवनिर्वाचित पार्षदों की खुली बैठक बुलाने से मामला दिलचस्प हो गया है. शिवसेना दावा कर रही है कि बीएमसी में मेयर उसी का होगा. तीन निर्दलीय पार्षदों के शिवसेना में आने से उसका दावा मजबूत भी हुआ है, लेकिन महाराष्ट्र की सरकार चला रही बीजेपी की नजर भी मेयर की कुर्सी पर है और सत्ताधारी पार्टी होने के नाते बीजेपी के लिए भी पार्षदों का समर्थन जुटाना असंभव नहीं है.
मेयर का चुनाव खुली बैठक में होने से अब दोनों पार्टियों के लिए बराबरी का मौका है. अगर शिवसेना और बीजेपी में तालमेल नहीं बैठा, तो मेयर के चुनाव में 31 पार्षदों वाली कांग्रेस की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाएगी. शिवसेना इन दिनों कांग्रेस की जिस तरह तारीफ कर रही है, उसको देखते हुए बीएमसी में भी अगर यूपी जैसा बेमेल गठबंधन बन जाए, तो किसी को हैरानी नहीं होगी.