नई दिल्ली: भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह पूरे धूमधाम से संपन्न हो गया. और इसी के साथ देवाधिदेव की दुल्हन अपने ससुराल कैलाश मानसरोवर पहुंच गईं. मेरे पीछे आप देख सकते हैं मानसरोवर जिसके ठीक पीछे बर्फ से ढका कैलाश पर्वत है.
भगवान शिव की ये प्रतिमा आह्लादित करती है. धरती या यूं कहें कि ब्रह्मांड का ये सबसे विशाल चेहरा है. देवाधिदेव महादेव का चेहरा ऊंचाई 112 फीट है.यानी 34 मीटर से भी ज्यादा है. भगवान शिव आदियोगी हैं. योग के प्रथम पुरुष आदियोगी की इस भव्य प्रतिमा का अनावरण महाशिवरात्रि के महा संयोग पर किया गया.
इस प्रतिमा का अनावरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया. इस ऐतिहासिक पल का गवाह असंख्य श्रद्धालुओं का सैलाब भी बना. इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने अग्नि को प्रज्वलित कर दुनिया भर में महायोग यज्ञ की शुरुआत की. दुनिया की इस सबसे विशाल प्रतिमा को कोयंबटूर में सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन ने बनाया है मकसद है.
मानवता को आदियोगी भगवान शिव के अनुपम योगदान के प्रति सम्मान है. इस खास प्रतिमा की खासियतें हजार हैं. पहली बार दुनिया में भगवान शंकर की 112 फीट ऊंची प्रतिमा बनी है. ईशा फाउंडेशन के मुताबिक ये प्रतिमा मुक्ति का प्रतीक है, जो उन 112 मार्गों को दर्शाता है, जिनसे इंसान योग विज्ञान के जरिए अपनी परम प्रकृति को हासिल कर सकता है.
चेहरे के डिजाइन को तैयार करने के लिए करीब ढाई साल लगे और ईशा फाउंडेशन की टीम ने इसे 8 महीने में पूरा किया. इस प्रतिमा को स्टील से बनाया गया है और धातु के टुकड़ों को जोड़कर इसे तैयार किया गया है. प्रतिमा का वजन 500 टन है. आज से पहले इस तकनीक का कहीं प्रयोग नहीं किया गया है, नंदी को भी बड़े खास तरीके से तैयार किया गया है.
धातु के 6 से 9 इंच बड़े टुकड़ों को जोड़कर नंदी का ऊपरी हिस्सा तैयार किया गया है. इसके अंदर तिल के बीज, हल्दी, पवित्र भस्म, विभूति, कुछ खास तरह के तेल, थोड़ी रेत, कुछ अलग तरह की मिट्टी भरी गई है.