नई दिल्ली: जैसे दिल्ली सात बार नई बसाई गई, वैसे ही मुंबई कभी सात द्वीपों में बंटा हुआ था. आज आप पूरे मुंबई में घूमते हैं, तो आपको लगता नहीं है कि आप कभी कभी एक आइलैंड से दूसरे पर भी चले जाते हैं, कभी तीसरे चौथे पर भी, लेकिन पता नहीं चलता. माहिम, वरली, परेल, मझगांव, लिटिल कोलाबा, कोलाबा और बॉम्बे, आप मैप में इन सातों को अलग अलग देख सकते हैं. मुंबई का इतिहास ने देश के इतिहास में कई दिलचस्प मोड देखे हैं और इन हजारों सालों में मुंबई के किंग मौर्या से लेकर ठाकरे तक तमाम बड़े नाम रहे हैं.
मुंबई का नाला सोपारा प्राचीन इतिहास का एक बड़ा पोर्ट था, उस वक्त सोपारा कहा जाता था. तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक के समय ये सातों आइलैंड्स मौर्य साम्राज्य के अधिकार में आ गए. मौर्या के बाद ये आंध्र के सातवाहन राजाओं के अधिकार में आ गए, इस राज्य का सबसे प्रतापी राजा गौतमी पुत्र सातकर्णी रहा है. प्राचीन भारत के तमाम बुद्ध विद्वानों की कलाकृतियां कन्हेरी और महाकाली गुफाओं में मिलती हैं. उत्तरवर्ती मौर्य राजाओं को चालुक्य राजा पुलकेशिन ने हराया और मुंबई उसके अधिकार में आ गया. अभीर, सिलहरी, राष्ट्रकूट कई राजवंशों के अलग अलग वक्त में सातों आइलैंड्स पर शासन करने के साक्ष्य मिलते हैं. हालांकि ये भी अभी तय नहीं है कि एलीफेंटा गुफाएं किसके शासन काल में बनाई गईं. हालांकि 13वी शताब्दी में जब इटली का यात्री मार्कोपोलो यहां आया तो उस वक्त राजा भीमदेव का शासन था, तब उसकी राजधानी आज के माहिम और प्रभादेवी की जगह महिकावती थी. उसके बेटे प्रतापविम्ब ने ये राजधानी प्रतापपुर के नाम से आज के मरोल में बना दी.
1318 में ये सातों आइलैंड अलाउद्दीन खिलजी के बेटे मुबारक खिलजी के नियंत्रण में आ गए, लेकिन बहुत कम समय के लिए. ये मुंबई का पहला मुस्लिम शासक था. लेकिन प्रतापदेव ने इसे फिर से जीत लिया, और फिर 1348 तक उसी यादव परिवार का शासन रहा. 1348 में मुंबई गुजरात के सुल्तानों ने कब्जा लिया, जो पहले दिल्ली के अधीन थे. एक तरह से दिल्ली और गुजरात के गठजोड़ का ये पहला वाकया था, जिससे जाकर मुंबई 1960 में छूटकर अलग हो पाया. हालांकि शुरूआत के दशक में उनका राज आज के थाने और बसई के कुछ इलाकों में ही था. मुंबई की तमाम बड़ी मस्जिदें इसी दौरान बनाई गईं, बड़े स्तर पर धर्मान्तरण भी हुआ, हाजी अली की दरगाह भी उन्हीं दिनों 1431 में बनीं. लेकिन मुगल सम्राट हुमायूं के डर से गुजरात के बहादुर शाह ने पुर्तगालियों से बेसिन की संधि की और उनको मुंबई से सातों आइलैंड्स सौंप दिए, बदलें में उसे पुर्तगालियों से सैन्य मदद मिली. बांद्रा, बायकुला और माहिम की जो भी ब़ड़ी और पुरानी चर्चें हैं, वो सब पुर्तगालियों के राज में बनीं, बांद्रा फोर्ट, मड़ फोर्ट और बॉम्बे कास्टल जैसे कई किले भी पुर्तगालियों ने ही बनवाए. हालांकि पुर्तगालियों ने मुंबई के अलग अलग इलाके लीज पर भी पुर्तगाली व्यापारियों को दे दिए. पहले साल में ही करीब दस हजार लोगों को ईसाई धर्म में कन्वर्ट किया गया.
इधर डचों की बढ़ती हुई ताकत से परेशान अंग्रेजों की नजर पश्चिम भारत में सबसे उपयुक्त पोर्ट मुंबई पर लगी हुई थी. मौका मिला 1662 में, 21 मई को ब्रिटेन के राजकुमार चार्ल्स सेकंड की शादी पुर्तगाल की राजकुमारी कैथरीन ऑफ ब्रगेंजा से हुई और दहेज में अंग्रेजों ने पुर्तगाली राजा से दो बड़े आइलैंड मांग लिए. एक तो बॉम्बे और दूसरा मोरक्को का टैंगियर. इस तरह से मुंबई अंग्रेजों का हो गया. हालांकि कुछ इलाके फिर भी पुर्तगालियों के अधिकार में रहे, जिनको अंग्रेजी गर्वनर कई साल में ले पाए.
अब बड़ा काम था इन सातो आइलैंड को मिलाने का काम, इसका क्रेडिट एक अंग्रेजी गर्वनर को जाता है, जिसका नाम था विलियम हॉर्नबी, जो 1771 में मुंबई का गर्वनर बनाकर भेजा गया था और सातों आइलैंड को जोड़ने की उसकी योजना को नाम दिया गया हॉर्नबी वैलार्ड. उसने ये योजना 1782 में शुरू की, जो 1838 में जाकर 56 सालों में जाकर पूरी हो पाई. उसकी योजना थी कि जो आइलैंड निचले इलाकों में हैं और हाई टाइड के वक्त उनमें पानी भर जाता है, उनको इस योजना से बहुत फायदा मिलेगा. पहले वरली क्रैक को भरने के काम की उसने शुरूआत की, उस वक्त एक लाख रुपए का खर्च आया.
हालांकि उसने अपनी योजना का प्रस्ताव जब लंदन में ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों को भेजा तो उन्होंने इस एप्रूवल देने से साफ इनकार कर दिया. लेकिन विलियम इसे हर हाल में पूरा करना चाहता था, उसने मना करने के वाबजूद काम रोका नहीं. ईस्ट इंडिया कंपनी ने उसे सस्पेंशन नोटिस भेजा, लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया और काम जारी रखा. पहला प्रोजेक्ट 1784 में पूरा हुआ और ये मुंबई का सबसे पहला और बड़ा सिविल इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट था. ईस्ट इंडिया कंपनी खफा थी, उसे वापस लंदन बुला लिया गया. हालांकि बाद में ये प्रोजेक्ट सातों आइलैंड्स को जोड़े जाने तक चलता रहा. बाद में लंदन के पास विलियम ने मुंबई के अपने घर जैसा ही घर बनवाया.
इधर अंग्रेजों को बॉम्बे की महत्ता समझ आ गई थी, वहां बड़ी चौड़ी सडकों और पोर्ट डेवलप करने में उन्हें बड़ा फायदा नजर आया. मुंबई की तरक्की जारी रही, 1836 में अंग्रेजों ने इसे बॉम्बे प्रेसीडेंसी नाम दे दिया, मुंबई को सेंटर बनाकर सिंध, गुजरात और महाराष्ट्र के कई इलाके इसके अधीन कर दिए, 1936 तक यही व्यवस्था बनी रही. ब्रिटेन की संसद ने कानून बनाकर राजा से इसे अपने अधिकार में ले लिया था. 1947 में देश की आजादी के बाद बॉम्बे स्टेट बना दिया गया, जिसके तहत गुजरात भी आता था.
फिर संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन शुरू हुआ, जिसकी परिणिति हुई महाराष्ट्र और गुजरात नाम के राज्यों के रूप में, महाराष्ट्र की राजधानी बॉम्बे को बना दिया गया, जिसे बाद में मुम्बा देवी के नाम पर मुंबई कर दिया गया. 1966 में शिवसेना बनी और शुरूआत में कांग्रेस को सपोर्ट करने के बाद बीजेपी की मदद से शिवसेना महाराष्ट्र की राजनीति पर छाती चली गई. पिछले बीस साल से शिवसेना का मुंबई शहर पर बीएमसी के जरिए कब्जा है, लेकिन इस बार उसकी ये किंगशिप खतरे में है, विधान सभा चुनावों की तरह फिर एक बार बीजेपी अलग चुनाव लड़ रही है, ऐसे में नतीजे अगर विधानसभा जैसे आए तो मुंबई को मिलेगा एक नया किंग.