मुंबई: मुंबई के BMC की 227 सीटों के लिए कल वोट डाले जाएंगे और विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना और बीजेपी दूसरी बार आमने सामने हैं. कहते हैं बीएमसी पर कब्जा मतलब पूरे मुंबई पर कब्जा है. इस बार बीएमसी किसकी होगी इसका फैसला मुंबईकर मंगलवार को करेंगे. बीएमसी के अलावा महाराष्ट्र की 9 दूसरी महानगरपालिकाओं के लिए भी कल ही वोटिंग होगी और सभी नतीजे 23 फरवरी को आएंगे.
देश भर की नजर इस चुनाव पर इसलिए भी लगी है, क्योंकि पिछले 22 साल में पहली बार ऐसा हो रहा है जब बीएमसी चुनाव में बीजेपी और शिवसेना की राहें अलग हैं. साल 2012 में हुए चुनाव में दोनों पार्टियों ने साथ चुनाव लड़कर बीएमसी की सत्ता हासिल की थी. पिछली बार 227 सीटों में से शिवसेना ने 164 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 75 सीटें जीती, जबकि बीजेपी ने 63 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 31 सीटें जीती थी.
इस बार दोनों पार्टियों में सीटों को लेकर मामला ऐसा उलझा कि चुनाव में दोनों आमने-सामने हो गईं. बीएमसी की सत्ता पर शिवसेना पिछले 22 साल से काबिज है. ठाकरे परिवार बीएमसी पर कब्जे के जरिए मुंबई पर अपना कब्जा बनाए रखना चाहता है.
बजट के लिहाज से भी BMC देश की सबसे बड़ी महानगरपालिका है. इसका सालाना बजट करीब 38 हजार करोड़ रुपए का है. जो कि कई छोटे राज्यों के बजट से भी ज्यादा है. इनमें गोवा, असम, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, सिक्किम शामिल हैं. मुंबई में शिवसेना और बीजेपी की मौजूदा ताकत करीब-करीब बराबर ही है.
मुंबई में कुल 36 विधानसभा की सीटें हैं. इनमें फिलहाल बीजेपी के पास 15 और शिवसेना के पास 14 सीटें हैं. लेकिन, बीएमसी में शिवसेना के पास 71 सीटें हैं. जबकि बीजेपी के पास महज 31 सीट. BMC मेयर शिवसेना का है तो BMC डिप्टी मेयर बीजेपी का है.
अंदर की बात ये है कि बीएमसी समेत महाराष्ट्र की 10 नगर पालिकाओं के चुनाव को मिनी विधानसभा चुनाव माना जा रहा है. इन चुनावों के नतीजों से महाराष्ट्र में राजनीति का भविष्य भी तय होना है, क्योंकि इन चुनावों में बीजेपी और शिवसेना के रिश्ते की कड़वाहट चरम पर पहुंच गई है.
शिवसेना को पता है कि अगर वो मजबूत हुई तो बीजेपी को उसकी शर्तों पर गठबंधन और सरकार चलाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा और अगर बीजेपी मजबूत हुई तो बीजेपी की पिछलग्गू बने रहना शिवसेना की मजबूरी होगी. शिवसेना को इस राजनीतिक अग्नि परीक्षा में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का इन-डायरेक्ट सहारा भी मिलता दिख रहा है, क्योंकि बीएमसी के चुनाव में राज ठाकरे ने पूरा जोर नहीं लगाया है.