नई दिल्ली : कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस सीएस कर्णन ने उन पर अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को खत लिखा है. कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई पर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि हाईकोर्ट के सिटिंग जज पर कार्रवाई का अधिकार संसद को है, नाकि सुप्रीम कोर्ट को.
जस्टिस कर्णन ने कहा कि मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस के रिटायरमेंट के बाद होनी चाहिए. अगर बहुत जल्दी हो तो मामले को संसद रेफर किया जाना चाहिए. इस दौरान मेरे जूडिशल और ऐडमिनिस्ट्रेटिव वर्क मुझे वापस दिए जाने चाहिए. जस्टिस कर्णन का कहना है कि अवमानना की कार्रवाई संविधान की धारा 219 (जजों की शपथ) का भी उल्लंघन है. जस्टिस कर्णन ने उच्च जाति के जजों पर एक दलित जज से प्रताडित करने के लिए कानून को हाथ में लेने का भी आरोप लगाया है.
चीफ जस्टिस जे एक खेहर की अगुआई वाले 7 जजों की बेंच पर सवाल उठाते हुए करनन ने उसपर दलित-विरोधी होने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि बेंच का झुकाव सवर्णों की ओर है. बता दें कि कर्णन दलित समुदाय से आते हैं. कर्णन ने अप्रत्यक्ष रूप से सुप्रीम कोर्ट पर दलित-विरोधी होने का आरोप लगाते हुए उनके केस को संसद रेफर करने के लिए कहा है.
बता दें कि जजों पर करप्शन का आरोप लगाने के मामले में जस्टिस कर्णन को हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की ओर से नोटिस दिया गया है. जस्टिस कर्णन को 13 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में पेश होने का नोटिस दिया था. इसी पर उन्होंने कोर्ट के रजिस्ट्रार को लेटर लिखा है, जिसमें यह बात कही गई है. यह पहला केस था जब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के मौजूदा जज को अवमानना का नोटिस भेजा था.