नई दिल्ली: सदियों से देश की धार्मिक धुरी रही अयोध्या की पहचान पिछले दो-तीन दशकों से मजहबी सियासत के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है. खासकर नब्बे के दशक में राम के नाम पर शुरू हुई राजनीति आज भी गाहे-बगाहे अयोध्या की फिजां गर्म कर देती है. लेकिन आज हम आपको राम और राजनीति से परे अयोध्या की वो तस्वीर दिखाने जा रहे हैं जो सही मायनों में देश की सांस्कृतिक नुमाइंदगी करती है.
मंदिर और मस्जिद के विवाद से इतर आज हम आपको उस राम से मिलवाएंगे जो कहीं गोरा है तो कहीं काला. आज हम आपको अयोध्या की गंगा-जमुनी तहजीब का वो चेहरा दिखाएंगे जो हिंदुस्तान की असल बुनियाद है. आज हम आपको बताएंगे कि सरयू की सनातन परंपरा कैसे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. आज हम आपको सड़क से बाजार तक अयोध्या की रोजमर्रा की जिंदगी से रूबरू करवाएंगे और समझाएंगे कि राम की नगरी में अवाम का क्या हाल है.
हरिद्वार की हरि की पैड़ी की तर्ज पर बनी राम की पैड़ी सैलानियों को लुभाने के लिए बनाई गई थी पर अब ये किसी गंदे नाले से कम नहीं है. इसमें पानी तो सरयू नदी का ही है पर उसमें न धार है न रफ्तार. कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव का ऐलान था कि राम की पैड़ी के दिन बहुत जल्द बहुरेंगे पर अब तो समाजवाद का हरा रंग भी यहां काई बन चुका है.
अयोध्या में एक मंदिर में राम का रंग गोरा है इसलिए इस मंदिर का नाम गोरे राम मंदिर है पर इसके ठीक सामने काले राम का मंदिर भी है. जिसमें स्थापित राम-लक्ष्मण-सीता सब का रंग काला है.
(वीडियो में देखें पूरा शो)