पंजाब के इस इलाके के वोटर सरकार बनाने और उखाड़ फेंकने का रखते हैं दम

चंडीगढ़. पंजाब विधानसभा चुनाव 2017 में इतना तो तय है कि अकाली-बीजेपी गठबंधन को इस बार ‘सत्ता विरोधी लहर’ का सामना करना पड़ रहा है. सीटों के विश्लेषण पर ध्यान पर दें तो तरन-तारन, अमृतसर, गुरदासपुर, पठानकोट यानी माझा इलाके के मतदाता हमेशा से ही सरकार के खिलाफ वोट डालते आए हैं. इस इलाके में […]

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पंजाब के इस इलाके के वोटर सरकार बनाने और उखाड़ फेंकने का रखते हैं दम

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  • February 2, 2017 6:38 am Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
चंडीगढ़. पंजाब विधानसभा चुनाव 2017 में इतना तो तय है कि अकाली-बीजेपी गठबंधन को इस बार ‘सत्ता विरोधी लहर’ का सामना करना पड़ रहा है.
सीटों के विश्लेषण पर ध्यान पर दें तो तरन-तारन, अमृतसर, गुरदासपुर, पठानकोट यानी माझा इलाके के मतदाता हमेशा से ही सरकार के खिलाफ वोट डालते आए हैं.
इस इलाके में 27 सीटें हैं. 1997 के चुनाव में कांग्रेस यहां पर एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. वहीं 2002 के चुनाव में जबरदस्त वापसी करते हुए कांग्रेस ने यहां पर 17 सीटें जीती थीं.
इसके बाद 2007 के विधानसभा चुनाव में अकाली-बीजेपी गठबंधन ने जोरदार वापसी की और 24 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इसके बाद 2012 के चुनाव में अकाली-बीजेपी के गठबंधन ने  जोरदार करिश्मा किया था और सरकार में होते हुए भी मालवा और दोआबा इलाके में क्लीन स्वीप करते हुए 69 सीटों पर कब्जा कर लिया.
10 सालों के शासन के बाद सत्ता पक्ष को इस बार अच्छे-खासे विरोध का सामना करना पड़ रहा है. देखने वाली बात यह होगी कि कांग्रेस या आम आदमी पार्टी इस विरोध को कितना भुना पाती है.
माझा इलाके इस बार कई सीटों पर सीधी टक्कर है. यहां की 25 सीटों पर पर अबकी बार कांग्रेस-अकाली, बीजेपी-कांग्रेस और कांग्रेस-आप के बीच लड़ाई है.
बात करें आम आदमी पार्टी की तो इस इलाके में अभी बेहद कमजोर है. 2014 को लोकसभा चुनाव में पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया था लेकिन इस इलाके से उसको एक भी सीट नहीं मिली थी.
इस बार गुरदासपुर, अमृतसर के ग्रामीण इलाकों में पार्टी को लेकर अच्छी-खासी चर्चा है. इस इलाके में मुद्दों की बात करें तो यहां का जनता गुरु ग्रंथ साहिब के अपमान, नोटबंदी और ड्रग्स की बाते छाई हुई हैं.
कहीं-कहीं पर आम वोटर के मन में बेरोजगारी का मुद्दा भी छाया हुआ है. लोगों कहना है कि राज्य में पढ़े-लिखे युवा बेरोजगार घूम रहे हैं. उनकी उम्र भी निकल चुकी है लेकिन राज्य सरकार ने बीते 10 सालों में उनकी नौकरी के लिए कोई ध्यान नहीं दिया है.
वहीं नोटबंदी के बाद से आई परेशानी का भी असर इस बार चुनाव में देखा जा सकता है. कुछ लोगों ने मीडिया से बातचीत में बताया कि कैसे अचानक लिए गए इस फैसले से दिक्कतों का सामना करना पड़ा.
कुल मिलाकर इतना तो तय है कि माझा इलाके की यह 25 सीटें पूरे राज्य के चुनावी रुख को हर बार तय करती हैं. अब देखने वाली बात यह होगी कि इन सीटों पर इस बार कौन सबसे ज्यादा भारी पड़ेगा.

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