नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक फरवरी को पेश होने वाले केंद्रीय बजट को हरी झंडी दे दी है. कोर्ट ने उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया जिसमें आशंका जताई गई थी कि केंद्र सरकार पांच राज्यों में चुनावों से पहले लोकलुभावन घोषणाएं कर सकती है. चीफ जस्टिस जे एस केहर ने कहा कि वकील एम एल शर्मा की ओर से दायर जनहित याचिका में कोई मेरिट नहीं है.
कोर्ट ने कहा कि याचिका इस आशंका से प्रेरित है कि मोदी सरकार वोटरों को प्रभावित कर सकती है. लेकिन इसकी एक भी मिसाल नहीं दी गई कि ऐसा कैसे हो सकता है. सिर्फ आशंका पर आधारित होने के चलते याचिका को खारिज कर दिया गया. याचिका में अपील की गई थी कि बजट को नए वित्त वर्ष में यानि एक अप्रैल को पेश किया जाना चाहिए. लेकिन इस याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक प्रावधानों का हवाला दिया.
कोर्ट ने कहा कि केंद्र, राज्य और समवर्ती सूची में विषयों को विभाजन साफ तौर पर किया गया है. केंद्रीय बजट को राज्यों में होने वाले चुनावों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता क्योंकि राज्यों में चुनाव होते रहते हैं. कोर्ट ने अपनी ठोस दलील से इस वोटरों को लुभाने की आशंका को भी खारिज कर दिया. कोर्ट ने एमएल शर्मा से कहा कि आपकी दलील बेतुकी है. इस तरह तो आप ये भी कहेंगे कि केंद्र में बैठी सरकार को राज्य में चुनाव लड़ना ही नहीं चाहिए.
बता दें कि जनहित याचिका से पहले विपक्ष ने चुनाव आयोग में भी बजट की तारीख टालने की गुहार लगाई थी. जनहित याचिका दाखिल करने वाले वकील और विपक्ष के नेताओं के पास कोई ठोस दलील नहीं है कि चुनाव के चलते बजट क्यों टाला जाए.
विपक्ष के नेता सिर्फ आशंका जता रहे हैं कि सरकार बजट में लोक-लुभावन घोषणाएं करके वोटरों को प्रभावित कर सकती है. अदालत ने यही कहा कि आशंका के आधार पर कानूनी फैसले नहीं सुनाए जाते. हालांकि अब ये आशंका बड़ी हो गई है कि बजट सत्र में विपक्ष बवाल मचा सकता है.