नई दिल्ली: जब मोदी ने स्लोगन दिया, ‘यस वी कैन’ तो कहा गया कि ये ओबामा का स्लोगन है, इसी स्लोगन की आगे के कड़ी को ओबामा ने अपनी राष्ट्रपति पारी खत्म होने के बाद बोला भी, ‘यस वी कैन एंड वी डिड इट’. हालांकि मोदी समर्थकों ने कहा कि मोदी ने ये स्लोगन 2004 में दिया था. अब ट्रम्प को जीत दिलाने वाले स्लोगन, ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ का भी एक इंडिया कनेक्शन सामने आया है.
20 जनवरी को अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की ताजपोशी है. 20 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति सालों के शपथ लेते आ रहे हैं. ऐसी ही एक परम्परा है स्लोगन देने की. हर अमेरिकी राष्ट्रपति अपने स्लोगन के जरिए एक तरह से अपनी सोच को देश के सामने रखा जाता है और उसी के आधार पर वोटिंग होगी है.
ऐसा ही एक स्लोगन दिया था, अमेरिका के 35वें राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने. वो कहा करते थे, ‘डोंट आस्क व्हाट यॉर कंट्री कैन डू फॉर यू, आस्क यॉरसेल्फ व्हाट यू कैन डू फॉर द कंट्री.‘ उनकी ये लाइन, ये स्लोगन लोगों के दिलों में असर कर गया.
पचास साल बाद आई एक किताब में बताया गया कि कैनेडी के स्कूल के हैडमास्टर ये लाइन रोज अपने स्टूडेंट्स को बोला करते थे, कैनेडी ने उस लाइन को तो अपनाया, लेकिन कभी अपने हैडमास्टर का नाम नहीं लिया.
इसी तरह डोनाल्ड ट्रम्प के स्लोगन, ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ का भी एक इंडिया कनेक्शन है, जिसकी शायद ट्रम्प को भी जानकारी नहीं. हालांकि भारत में तमाम संगठन देश को फिर से विश्व गुरू बनाने की जो बात करते हैं, वही ट्रम्प ने की है. लेकिन उसका असल कनेक्शन रॉबर्ट क्लाइव पर जाकर होता है.
रॉबर्ट क्लाइव को आप सबने स्कूल की इतिहास की किताब में पढ़ा होगा. कैसे उसने 18 वीं सदी में अंग्रेजी साम्राज्य की जड़ें भारत में जमाईं और कैसे 1757 के प्लासी के युद्ध में कितनी कम सेना से सिरौजुद्दौला को मात देकर भारत में अंग्रेजी राज की नींव रखी, भारत के हर बच्चे को पढना होता है.
क्लाइव भारत से ढेर सारा पैसा कमाकर ले गया, यहां तक उसने जब भारत छोड़ा तब देश एक बड़े अकाल से गुजर रहा था. बंगाल की ही तिहाई आबादी उस अकाल से मर गई, लेकिन क्लाइव केवल ईस्ट इंडिया कंपनी के मुनाफे को चौगुना करने में लगा रहा. जनता दोहरे प्रशासन के बीच पिस गई और कंपनी के कर्मचारी जरूरी चीजों को दोगुनी कीमत पर बेचकर मुनाफा कमाते रहे.
जब हजारों लोग मर गए तो दुनियां भर में इसकी चर्चा होने लगी. पहली बार 1760 में क्लाइव वापस लंदन लौटा तो उसकी उम्र बस पैंतीस साल थी और उस वक्त उसके पास पैसा था पूरे तीन लाख डॉलर. सोचिए 250 साल बाद आज उस पैसे की वैल्यू क्या होती.
लंदन पहुंचकर वह एमपी बन गया यानी हाउस ऑफ कॉमंस का सदस्य. नॉन ग्रेजुएट क्लाइव को ऑक्सफोर्ड ने एक हॉनरेरी डिग्री दे दी. वो दो साल के लिए 1765 में फिर भारत आया. बंगाल के नए नवाब से फिर एक लाख डॉलर की भेंट ली. उसका पूरा फोकस कंपनी के लिए, कंपनी के अधिकारियों के लिए और अपने लिए ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना था, ऐसे में जो व्यवस्था पूर्ववर्ती शासकों की जन कल्याण के कामों के लिए थी, वो बिखर गई. शासन भारतीय राजा या जमींदार कर रहे थे और ज्यादा से ज्यादा कर ईस्ट इंडिया कंपनी के हिस्से में आया. अकाल की त्रासदी ने दुनियां भर में ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों को आलोचना का केन्द्र बना दिया.
ऐसे में 1772 में क्लाइव के खिलाफ लंदन की संसद में इन्क्वायरी बैठा दी गई. उस इन्क्वायरी पैनल को जो रॉबर्ट क्लाइव का जवाब था, उसने अमेरिका की आजादी के लिए लड़ रहे क्रांतिकारियों को गुस्से से भर दिया.
क्लाइव ने कहा था, ‘’मैं ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए नौकरी कर रहा था, भारतीयों के लिए नहीं. मेरा काम भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के हितों की रक्षा करना, उनके लिए ज्यादा से ज्याद रेवेन्यू इकट्ठा करना था, ना कि भारतीयों के लिए अकाल राहत सहायता कैम्प चलाना.“ इतने अमानवीयता पूर्ण बयान की दुनियां भर में निंदा की गई.
क्लाइव ने खुलाकर माना कि भले ही वो शासक थे, लेकिन उन्हें शासितों की नहीं बल्कि अपने रेवेन्यू की चिंता थी. ऐसे में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ आक्रोश की ज्वाला अमेरिका में और तेज हो गई. उत्तरी अमेरिका में क्लाइन के भाषण के पोस्टर जगह जगह बांटे जाने लगे, उनमें लिखा गया कि जब इंडियंस को लेकर इस कंपनी और इस देश की ये सोच है तो अमेरिकंस को लेकर क्यों अलग होगी?
क्लाइव तो 1774 में अपने घर में संदिग्ध परिस्थितियों में मर गया लेकिन अमेरिकी आजादी के नायकों ने उसी आजादी की लड़ाई में क्लाइव के बयान के विरोध में एक स्लोगन दिया, ‘मेक अमेरिका ग्रेट’. अब उसी स्लोगन में डोनाल्ड ट्रम्प ने ‘अगेन’ शब्द जोड़कर बना दिया, ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ और सारे मीडिया सर्वेक्षणों और चुनावी विश्लेषकों को धता बताते हुए डोनाल्ड ट्रम्प ने बाजी मार ली और 20 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने जा रहे हैं.