पहाड़ पर क्या फिर से ‘पैराशूट’ से उतरेगा सीएम ?

नई दिल्ली. उत्तराखंड के चुनावी माहौल में इन दिनों एक दिलचस्प सवाल भी हलचल मचाए हुए है. सवाल ये है कि उत्तराखंड में इस बार चुने गए विधायकों में से कोई मुख्यमंत्री बनेगा या परंपरा के हिसाब से इस बार भी पहाड़ पर पैराशूट से ही उतरेगा अगला सीएम?
कुर्सी देहरादून में, बैठता है दिल्ली वाला !
दरअसल उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से ही सूबे में सरकार का इतिहास बड़ा अनोखा रहा है. 2002 के बाद से उत्तरांचल उत्तराखंड बन गया, इस दौरान कांग्रेस से बीजेपी और बीजेपी से कांग्रेस के हाथ में सत्ता आती-जाती रही, लेकिन दोनों पार्टियों ने मानो परिपाटी बना ली कि देहरादून में सीएम की कुर्सी पर किसी सांसद को ही बैठाना है.
तिवारी जी से शुरू हुई परिपाटी
2002 में उत्तराखंड (तब नाम उत्तरांचल था) में कांग्रेस को सत्ता मिली. मुख्यमंत्री पद के लिए इंदिरा हृदयेश से लेकर हरीश रावत तक के नाम चर्चा में थे, लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने ‘नवनिर्वाचित विधायकों की राय पूछकर’ नारायण दत्त तिवारी को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बना दिया. तिवारी जी उन दिनों नैनीताल से सांसद हुआ करते थे. माना जा रहा था कि एनडी तिवारी को कुछ समय बाद हटा कर कांग्रेस नेतृत्व अपनी पसंद के किसी दूसरे नेता को सीएम बनाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. तिवारी जी पूरे पांच साल तक कुर्सी पर काबिज रहे.
बीजेपी को भी रास आया ‘सांसद सीएम’
कांग्रेस ने जो रास्ता 2002 के चुनाव बाद दिखाया, उसी पर 2007 के विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी भी आगे बढ़ी. चुनाव जीतकर विधायक बनने वालों में भगत सिंह कोश्यारी भी थे, जिन्हें बीजेपी ने 2002 के चुनाव से ठीक पहले सीएम बनाया था. लेकिन 2007 में चुनाव में बहुमत मिलने के बाद बीजेपी को अपने 34 विधायकों में मुख्यमंत्री बनने लायक कोई नहीं दिखा और उसने भी अपने नवनिर्वाचित विधायकों की ‘मर्जी’ से भुवन चंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री बना दिया. उस वक्त भुवन चंद्र खंडूरी गढ़वाल लोकसभा सीट से सांसद थे.
कांग्रेस के पैराशूट से उतरे बहुगुणा
2012 के चुनाव में कांग्रेस उत्तराखंड में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. बहुमत से दूर थी लेकिन बहुमत का जुगाड़ होते ही कांग्रेस नेतृत्व ने फिर से पुराना दांव खेला. विधायकों को नजरअंदाज़ करके विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया गया, जो उस वक्त टिहरी गढ़वाल से सांसद थे. बाद में बहुगुणा को ‘रिप्लेस’ किया हरीश रावत ने और इत्तेफाक से मुख्यमंत्री बनते वक्त हरीश रावत भी सांसद ही थे.
इस बार चमकेगी चुने गए विधायकों में किसी की किस्मत ?
उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है. 20 जनवरी को नामांकन शुरू होगा और 11 फरवरी को वोटिंग के ठीक एक महीने बाद यानी 11 मार्च को नतीजे आएंगे. हरीश रावत मुख्यमंत्री हैं, इसलिए उनके समर्थक मानकर चल रहे हैं कि बहुमत मिला तो सीएम रावत साहब ही होंगे, हालांकि कांग्रेस आलाकमान ने ऐसी कोई गारंटी नहीं दी है और ना ही घोषित तौर पर हरीश रावत को अगला सीएम ही बताया गया है.
बीजेपी का भी यही हाल है. भगत सिंह कोश्यारी, अजय टमटा, रमेश पोखरियाल निशंक और बीसी खंडूरी जैसे कई दावेदार हैं, जो सीएम पद की रेस में माने जा रहे हैं, लेकिन बीजेपी किसी एक चेहरे पर चुनाव लड़ने के मूड में नहीं है. इसलिए दुविधा कायम है कि कहीं फिर दोनों पार्टियों के आलाकमान ने दिल्ली से किसी खास को देहरादून की कुर्सी तोहफे में थमाने का प्लान तो नहीं बना रखा है.
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