चेन्नई : तमिलनाडू में पोंगल से पहले मनाए जाने वाले
जल्लीकट्टू पर बैन हटाने से
सुप्रीम कोर्ट के इंकार के बाद आज यानी शुक्रवार को
तमिलनाडु की जनता इस फैसले के विरोध में उतर आई है.
जल्लीकट्टू से रोक हटाने के लिए डीएमके के अध्यक्ष
एमके स्टालिन और कनिमोझी भी प्रदर्शनकारियों का साथ दे रहे हैं. वहीं पार्टी के कार्यकर्ताओं ने जल्लीकट्टू से रोक हटाने को लेकर कलेक्टर ऑफिस के पास इकट्ठे होकर विरोध प्रदर्शन किया.
स्टालिन ने
केंद्र सरकार से गुहार लगाई है कि जल्लीकट्टू पर रोक न लगाई जाए और तमिलनाडु की परंपरा बचाने के लिए अध्यादेश लाया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने कल यानी गुरुवार को शनिवार से पहले जलीकट्टू पर फैसला देने वाली अर्जी को ठुकराया दिया है. कोर्ट ने कहा कि बेंच को आदेश पास करने को कहना अनुचित है. जल्लीकट्टू मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के नोटिफिकेशन पर अपना फैसला सुरक्षित रख रखा है.
दरअसल 22 जनवरी 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू पर लगाई गई रोक पर पुनर्विचार करने से मना कर दिया था. तमिलनाडु के कुछ निवासियों की तरफ से दायर पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में जल्लीकट्टू पर रोक लगाई थी.
केंद्र सरकार ने 8 जनवरी को अधिसूचना जारी कर जल्लीकट्टू पर लगे प्रतिबंध को हटा लिया था. अधिसूचना में कुछ प्रतिबंध भी लगाए गए थे. एनिमलवेलफेयर बोर्ड, पीपुल फार एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स, बंगलुरु के एक एनजीओ और अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में अधिसूचना को चुनौती दी थी. याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अधिसूचना पर रोक लगा दिया था.
जल्लीकट्टू यानी सांड़ों की दौड़ पर रोक के खिलाफ तमिलनाडू सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची है. तमिलनाडु सरकार ने याचिका में परंपरा का हवाला दिया. इस पर जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि इस दलील में दम नहीं. 1899 में 10 हज़ार से ज़्यादा बाल विवाह हुए. 12 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी हुई. क्या इसे परंपरा मान कर जारी रहने दिया जा सकता है? हमें सिर्फ ये देखना है कि ये खेल कानून और संविधान की कसौटी पर खरा उतरता है या नहीं.