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B’Day Special : जब ईंट भट्टा में काम कर रहे बाल मजदूरों को छुड़ाने पहुंचे थे नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी

पिछले कई सालों से बचपन को बचाने के लिए दिन-रात कोशिश करने वाले नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी का आज जन्मदिन है. कैलाश सत्यार्थी आज 63 साल के हो गए हैं और वो अब तक 144 देशों के 83 हजार बच्चों का जीवन बचा चुके हैं.

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  • January 11, 2017 4:26 am Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
नई दिल्ली. पिछले कई सालों से बचपन को बचाने के लिए दिन-रात कोशिश करने वाले नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी का आज जन्मदिन है. कैलाश सत्यार्थी आज 63 साल के हो गए हैं और वो अब तक 144 देशों के 83 हजार बच्चों का जीवन बचा चुके हैं.
 
कैलाश सत्यार्थी का जन्म 11 जनवरी 1954 को मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में हुआ. उनका वास्तविक नाम कैलाश शर्मा है. उन्होंने अपनी शरूआती शिक्षा सरकारी स्कूल से की. इसके बाद उन्होंने जिले के ही सम्राट अशोक टेक्नोलॉजी इंस्ट्यूट से की. पोस्ट ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद उन्होंने भोपाल के एक कॉलेज में कुछ साल तक एक लेक्चरार के तौर पर काम किया.
 
 
वैसे तो बचपन से उनका मन था कि वो समाज सेवाजसेवा करें. इसी भावना के साथ उन्होंने ‘संघर्ष जारी रहेगा’ नामक पत्रिका की शुरूआत की. इसके जरिए उन्होंने बंधुआ मजदूरों की पीड़ा को आवाज दी. 
 
उनके जीवन से जुड़ी एक घटना है कि एकबार उन्हें किसी ने बताया कि पंजाब के एक ईंट भट्टा पर बच्चों से बंधुआ मजदूरी कराई जा रही है. फिर क्या था वो अपने फोटोग्राफ के साथ वहां पहुंच गए, लेकिन जैसे ही भट्टी के मालिक को पता चला तो उसने उनके कैमरे तोड़कर भगा दिया. इसके बावजूद उन्होंने किसी तरह तीन रील को बचा लिया था. इसके बाद उन्होंने इसे अपने अखबार में छाप दिया और उच्च न्यायालय में चले गए. कोर्ट के फैसने के अनुसार 48 घंटे के अंदर उन बंधुआ मजदूरों को आजाद कर दिया गया.
 
 
इसके बाद उन्होंने ‘बंधुआ मुक्ति मोर्चा’ का गठन किया. आज यह संस्था के सदस्य देशभर के कई हिस्सों मे बाल मजदूरी कर रहे बच्चों को कराती है. यह मोर्चा उनके बचपन बचाओ आंदोलन के तहत चलाया जाता है. इतना ही नहीं बाल मजदूरी के खिलाफ उन्होंने अफने अभियान को विदेशों में भी फैलाया है. 
 
कैलाश सत्यार्थी को लोग समाज सेवा के साथ-साथ भोपाल गैस त्रासदी से राहत अभियान के लिए भी जाना जाता है. अपने अब तक के जीवन में उन्हें कई पुरस्कारों से भी स्मानित किया गया है. जिसमें 2014 में उन्हें मिला नोबेल शांति पुरस्कार भी शामिल है. 

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