श्रीनगर: पीडीपी के संरक्षक
मुफ्ती मोहम्मद सईद जम्मू-कश्मीर के 12वें मुख्यमंत्री थे. सईद को सौम्य राजनेता के रूप में देखा जाता था. सईद देश के पहले मुस्लिम गृहमंत्री थे. आज इनकी पहली पुण्य तिथि है.
जीवन परिचय
मुफ्ती मोहम्मद सईद का जन्म 12 जनवरी 1936 को
जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के बिजबेहरा गांव में हुआ था. प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद सईद ने श्रीनगर के एस पी कॉलेज और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से कानून और अरब इतिहार की पढ़ाई की.
राजनीति की शुरूआत
सईद ने 1962 में अपने गृहनगर से डीएनसी के नेतृत्व में चुनाव जीतकर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत की थी. सईद ने 1967 में एक बार फिर यहां से जीतकर राजनीतिक परिवक्वता का परिचय दिया.
1972 में वह पहली बार
कांग्रेस की तरफ से विधान परिषद के नेता और कैबिनेट मंत्री बने. 1975 में उन्हें कांग्रेस विधायक दल का नेता और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन वह अगले दो चुनाव हार गए.
1986 में केंद्र में राजीव गांधी की सरकार में बतौर वह पर्यटन मंत्री के रूप में शामिल हुए, लेकिन सईद ने एक साल बाद मेरठ दंगों से निपटने में कांग्रेस के तौर-तरीकों और इनमें पार्टी की कथित संलिप्तता का आरोप लगाते हुए त्यागपत्र दे दिया.
2002 में पहली बार बने मुख्यमंत्री
2002 में जब मुफ्ती कांग्रेस के गठबंधन के साथ 16 सीटें लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उस समय जम्मू-कश्मीर कई मोर्चो पर समस्याओं का सामना कर रहा था. संसद पर हमले के बाद सेना और पाकिस्तान एक दूसरे की आंखों में आंखें डाले खड़े थे और राज्य में निजी स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लग गए.
एक दूरदर्शी नेता, चुस्त राजनीतिक रणनीतिकार और समझदार राजनेता के रूप में देखे जाने वाले मुफ्ती के परिदृश्य में आने के बाद और बड़े सधे तरीके से राजनीतिक समीकरणों को संतुलित करने की उनकी कला के चलते हालात में तेजी से बदलाव आया. यह बदलाव दोनों स्तर पर था राज्य के भीतर भी और क्षेत्रीय संबंध में भी.
बेटी के बदले पांच आतंकवादियों को छुड़वाया
मुफ्ती मोहम्मद सईद की छवि को उस समय धक्का लगा, जब वीपी सिंह की अगुवाई वाली सरकार ने उनकी तीन बेटियों में से एक रूबिया की रिहाई के बदले में पांच लोगों को छोड़ने की आतंकवादियों की मांग के आगे घुटने टेक दिए थे.
रूबिया की रिहाई के बदले में आतंकवादियों की रिहाई के संवेदनशील मामले का जम्मू-कश्मीर की राजनीति में दूरगामी प्रभाव पड़ा. दो दिसंबर 1989 को राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार के गठन के पांच दिन के बाद ही रूबिया का अपहरण कर लिया गया था.