नई दिल्ली: मंगलवार को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस टी एस ठाकुर अपने पद से रिटायर हो गए. अपनी फेयरवेल स्पीच के दौरान जस्टिस ठाकुर ने कहा कि वो संविधान में एक संशोधन करना चाहते हैं जिसके तहत रिटायरमेंट के बाद भी जज प्रैक्टिस कर सकें.
मजाकिया अंदाज में उन्होंने कहा कि वकीलों के लिए रेस कभी खत्म नहीं होती है. पहले वकील बनने की रेस फिर सीनियर वकील बनने की रेस. उन्होंने कहा कि- ‘मेरा मानना है कि अगर जवानी में मैं
सुप्रीम कोर्ट आता तो शायद जज ना बन पाता.’
उन्होंने ये भी कहा कि हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकीलों का सुप्रीम कोर्ट पहुंचना बहुत मुश्किल है. जस्टिस ठाकुर ने ये भी कहा कि- जब कोई नौजवान वकील किसी मामले में अच्छी बहस नहीं कर पाते तो उन्हें बहुत दुख होता है, क्योंकि ऐसा करके वे नौजवान वकील अपना नाम नहीं कमा पाते हैं.
आने वाले दिनों में गंभीर मसले कोर्ट तक आएंगे
उन्होंने कहा कि ज्यादातर मुवक्किल भी यही मानते हैं कि नौजवान वकील की वजह से केस हार गए. उन्होंने नौजवान वकीलों को सलाह दी कि उन्हें और ज्यादा मेहनत करनी चाहिए. उन्होंने ये भी कहा कि- आने वाले दिनों में साइबर लॉ, मेडिकल लीगल केस, जेनेटिक केस जैसे बहुत गंभीर मसले आने वाले हैं. नौजवानों को इसके लिए तैयार रहने की जरूरत है.
अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि देश तेजी से तरक्की कर रहा है और ऐसे में बार को तैयार रहना चाहिए. उन्होने कहा कि आप बिल्डिंग नहीं बनाते लेकिन आपका रोल बेहद अहम है. आपको अपनी भूमिका निभानी होगी. समाज में शांति के लिए काम करना होगा.
मशहूर शायर निदा फाजली के शेर से खत्म की बात
जस्टिस ठाकुर ने कहा कि पिछले 45 सालों में मैने अपनी भूमिका अदा कर दी. लेकिन आगे भी काम करता रहूँगा. न्यायपालिका बिना डर के काम करती रहे, मैं इसके लिए काम करता रहूंगा. अपने फेयरवेल स्पीच का अंत उन्होंने स्वर्गीय निदा फाजली के एक मशहूर शेर से किया- ‘कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता, कभी ज़मी तो कभी आसमां नहीं मिलता.‘