पुण्यतिथि: भारत में आर्थिक सुधार के जनक और पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को था 17 भाषाओं का ज्ञान

नई दिल्ली: भारत के नौवें प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव की आज पुण्यतिथि है. 9 दिसम्बर 2004 को राव को दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (नई दिल्ली) में भर्ती कराया गया.  23 दिसम्बर को उन्होंने अंतिम सांसे लीं…
पी. वी. नरसिंह राव का जन्म 28 जून 1921 को आंध्रप्रदेश के करीमनगर में एक सामान्य परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम पी. रंगा राव और माता का नाम रुक्मिनिअम्मा कृषक थे. राव ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा करीमनगर जिले के भीमदेवरापल्ली मंडल के कत्कुरू गांव में अपने एक रिश्तेदार के घर रहकर पूरी की.  नरसिंह राव के तीन बेटे और पांच बेटियां हैं. आज आपको बतातें हैं इनके बारे में कुछ अनसुनी बातें..
राव की मातृभाषा तेलुगु थी पर मराठी भाषा पर भी उनकी जोरदार पकड़ थी. आठ भारतीय भाषाओं  समेत  (तेलुगु, तमिल, मराठी, हिंदी, संस्कृत, उड़िया, बंगाली और गुजराती) 17 भाषाओं का ज्ञान था. जिसमें उन्हें  अंग्रेजी, फ्रांसीसी, अरबी, स्पेनिश, जर्मन और पर्शियन बोलने में एक्सपर्ट.
उनका प्रधानमंत्री बनना इस बात के लिए भी महत्वपूर्ण है की वे पहले दक्षिण भारतीय थे जो भारत के प्रधानमंत्री बने.
साहित्य के अलावा उन्हें कंप्यूटर प्रोग्रामिंग जैसे विषयों में भी रूचि थी. उनके कार्यकाल के दौरान भी देश की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी (बी.जे.पी.) का उत्कर्ष हुआ और अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद भी ढहा दी गयी.
नरसिंह राव को भारत में कई प्रमुख आर्थिक परिवर्तन लाने का श्रेय भी दिया जाता है. ‘लाइसेंस राज’ की समाप्ति और भारतीय अर्थनीति में खुलापन उनके प्रधानमंत्री काल में ही आरम्भ हुआ. ये आन्ध्रा प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे है.
उन्होंने एक ऐसी अर्थव्यवस्था की शुरुआत की जो नेहरु के मिश्रित अर्थव्यवस्था के सिद्धांत से बिल्कुल अलग था.
उन्होंने तत्कालीन वित्तमंत्री मनमोहन सिंह के साथ मिलकर देश की जर्जर अर्थव्यवस्था को वैश्विकरण और उदारीकरण के माध्यम से एक नयी दिशा प्रदान की। इसी कारण उन्हें ‘भारत के आर्थिक सुधार का पिता’ माना जाता है.
उनकी ओर से शुरु की गई आर्थिक सुधार की नीति को बाद में आने वाली वाजपेयी और मनमोहन सिंह सरकारों ने भी जारी रखा. उनकी सरकार काफी अल्पमत में थी फिर भी उन्होंने 5 साल पूरा करने में सफलता हासिल की. उनकी इस योग्यता की वजह से ही उन्हें ‘चाणक्य’ भी कहा गया.
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