नई दिल्ली : मस्जिदों के जरिए इस्लामी कानून के नाम पर फैसले और फतवे सुनाने को अब चेन्नई हाईकोर्ट ने भी गैरकानूनी बताया है और चार हफ्ते में तमिलनाडु की सभी शरिया अदालतों को बंद करने का हुक्म दिया है. क्या मस्जिदों में इबादत के साथ-साथ शरिया अदालतें चलाना ठीक है. सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कोर्ट के इस आदेश के बाद मौलाना शरीयत के नाम पर फतवे देना बंद करेंगे.
मुस्लिम समाज में तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सुनवाई चल रही है और अब जिस शरीयत के नाम पर तीन तलाक को इस्लामिक कानून बताया जाता है, उस पर भी गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं. चेन्नई हाईकोर्ट ने मस्जिदों में चल रहीं शरिया अदालतों को गैरकानूनी बताया है. एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए चेन्नई हाईकोर्ट की दो जजों की बेंच ने तमिलनाडु सरकार से कहा है कि 4 हफ्ते में सभी शरिया अदालतों को बंद कराया जाए और स्टेटस रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल की जाए.
सुप्रीम कोर्ट 2014 में ही कह चुका है कि दारूल कज़ा और शरिया अदालतों के फैसलों की कोई कानूनी या संवैधानिक अहमियत नहीं है. शरिया अदालतों के फैसले मानना ही होगा, ऐसी कोई मजबूरी किसी के लिए नहीं है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अभी इसी महीने टिप्पणी की है कि तीन तलाक महिलाओं के साथ क्रूरता है और इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ के नाम पर भी सही नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ संविधान से ऊपर नहीं है. चूंकि शरिया अदालतों में ज्यादातर मामले शादी और तलाक से ही जुड़े होते हैं और देश की बड़ी अदालतों ने इसे गैरकानूनी बताया है.
क्या कोर्ट के इस आदेश के बाद शरियत के नाम पर मस्जिदों और मदरसों से फतवा जारी करना बंद होगा जानने के लिए वीडियो में देखा पूरा शो-