नई दिल्ली: नोटबंदी के दौर में कालाधन ठिकाने लगाने वालों पर सरकार नकेल कसने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है. कालाधन ठिकाने लगाने वालों की धर-पकड़ जोर-शोर से चल रही है. वहीं नोटबंदी के फायदे और नुकसान पर राजनीति भी जमकर हो रही है.
लेकिन राजनीतिक पार्टियां अपने धन और बही-खाते का खुलासा करने को तैयार नहीं हैं. हालत ये है कि अब तो चुनाव आयोग को भी कहना पड़ गया है कि राजनीतिक दलों को 2 हज़ार से ज्यादा बेनामी चंदा लेने पर रोक लगनी चाहिए.
राजनीतिक पार्टियों के नाम पर कैसे पैसे का घालमेल होता है इसकी एक बानगी देखिए. आपने हरियाणा में टोला पार्टी और टोटल विकास पार्टी के बारे में कभी सुना है? दिल्ली में सत्य बहुमत पार्टी या भारतीय जनता की एकता पार्टी का नाम भी सुना है. नहीं ना? तो आपको बता दें कि देश में ऐसी 1786 पार्टियां रजिस्टर्ड हैं, जिनमें से आधे से ज्यादा चुनावी राजनीति से दूर हैं.
अगर राजनीतिक पार्टियां चुनाव नहीं लड़ती हैं, तो पैदा क्यों होती हैं
अब सवाल ये उठता है कि अगर राजनीतिक पार्टियां चुनाव नहीं लड़ती हैं, तो पैदा क्यों होती हैं? इसका जवाब चुनाव आयोग की एक सिफारिश में छिपा है. चुनाव आयोग ने सरकार से सिफारिश की है कि जो पार्टियां रजिस्टर्ड हैं और चुनाव नहीं लड़तीं, उनकी कमाई पर इनकम टैक्स की छूट खत्म होनी चाहिए. चुनाव आयोग ने ये भी कहा है कि पार्टियों को 2 हज़ार से ज्यादा चंदा देने वालों का ब्यौरा इनकम टैक्स रिटर्न में देना चाहिए. इसके लिए कानून में बदलाव करने का वक्त आ गया है.
कैसे इन अन्जान पार्टियों के भरोसे ही करोड़ों रूपए का कालाधन सफेद हो सकता है और आखिरकार क्यों राजनीतिक पार्टियां अपने चंदा देने वाले का नाम सामने नहीं लाना चाहती जानने के लिए वीडियो में देखें पूरा शो-