नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश के सियासी मैदान को मारने के लिए राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी पिच तैयार करने में लग चुकी हैं. इस बार मुकाबला कड़ा होगा और समीकरण भी बदलेंगे.
हालांकि, चुनाव आते-आते सियासत का ऊंट किस करवट बैठेगा इसके सिर्फ कयास लगाए जा सकते हैं लेकिन नोटबंदी के फैसले ने यूपी को बड़ा चुनावी मुद्दा दे दिया है. बीजेपी नोटंबदी के फैसले से गरीबों के वोट बटोरना चाहती है और दूसरे दल मोदी के इस फैसले की हवा निकालकर अपना वोट बचाना चाहते हैं.
फिलहाल सबसे ज्यादा छटपटाहट कांग्रेस में दिखाई दे रही है. आज देश के प्रधानमंत्री मोदी ने कानपुर में रैली की और राहुल ने जौनपुर में. मोदी ने नोटंबंदी के फैसले को भुनाने की कोशिश की और कांग्रेस पर जमकर हमला बोला और वही राहुल ने बीजेपी पर.
बताया गरीबों का मसीहा
दोनों के भाषण में एक बात जो गौर करने वाली थी वो ये कि दोनों ही अपने आप को गरीबों के मसीहा बताते नजर आए. आज इन्हीं के भाषण में हमारा सवाल भी छिपा है, जिसका जवाब आज हम लेंगे.
पहले भी वादे अब भी वादे क्या यूपी में वादों से लड़े जाएंगे चुनाव? राहुल भी गरीबों की लड़ाई लड़ रहे है मोदी भी, आखिर सच कौन बोल रहा है? गरीबों के हक में और काले धन के खिलाफ असली लड़ाई कौन लड़ रहा है? राहुल भी वही कर रहे है, मोदी भी वही कर रहे है तो फिर दिक्कत कहां है?
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