नई दिल्ली: सोचिए कितना अच्छा हो जब हमें महीने में सिर्फ 5 दिन काम करना पड़े और सैलेरी पूरे महीने की उठाएं. पर ऐसा आम जनता के लिए असल ज़िंदगी में होना तो दूर की बात सोचना भी असंभव है. लेकिन अगर हम कहें कि हमारे ही देश में एक तबका ऐसा है जो काम तो महीने में 17 फीसदी यानि की 5 दिन ही करता है पर सैलरी पूरे महीने की उठाता है तो?
हैरान मत हों ये हमारे देश की संसद का हाल है. हमारे सांसदों को लिए ये बात सपना नहीं सच है. पहले नोटबंदी और अब 2 दिन से किरण रिजिजू के मामले को लेकर सदन में विपक्ष का हंगामा जारी है. इससे पहले विपक्ष ने मांग थी कि पीएम की मौजूदगी में सदन में नोटबंदी पर चर्चा हो. कांग्रेस ने वोटिंग के तहत सदन में चर्चा की मांग की, लेकिन सरकार इस पर राजी नहीं हुई.
नतीजा ये हुआ कि 16 नंवबर से शुरु हुआ पार्लियामेंट का विंटर सेशन अब खत्म होने को आ गया. लेकिन हंगामें के अलावा कोई नतीजा नहीं निकला. ऐसे में सवाल ये उठता है कि जनता के काम के लिए कौन है? संसद चलाने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ सत्ता पक्ष की है या विपक्ष की भी भूमिका होनी चाहिए?
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