नई दिल्ली: 9 नवंबर से नोटबंदी के बाद से ही लोगों के पास पैसे की किल्लत हो गई है. हालत ये हो गई है कि लोगों के अकाउंट में तो पैसे हैं पर उसे वो निकाल नहीं पा रहे. विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ अब जनता भी सरकार के इस फैसले से परेशान हो रही है. नोटबंदी के फैसले को लेकर विपक्ष सड़क से लेकर संसद तक सरकार को घेर रही है.
सरकार को कठघरे में खड़ा करने की सबसे बेहतर जगह देश की संसद है. संसद ही वो जगह है, जहां विपक्ष के सवालों का जवाब सरकार को ठोस तथ्यों के साथ देना होता है. नोटबंदी के चलते लोगों की परेशानी पर सरकार से जवाब मांगने के लिए विपक्ष ने संसद में बहस तो छेड़ी, लेकिन इस बहस को अंज़ाम तक पहुंचाने की बजाय पूरा विपक्ष सिर्फ हंगामा कर रहा है.
9 नवंबर से देश के बैंकों का हाल और 16 नवंबर से संसद का नज़ारा जस का तस है. बैंकों के बाहर या तो लंबी कतारें लगी हैं या नो कैश का बोर्ड लटका है दूसरी तरफ संसद के दोनों सदनों में सिर्फ नारेबाज़ी और हंगामा हो रहा है.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि नोटबंदी के बाद बैंकों में कैश की किल्लत है और लोगों को परेशानी हो रही है. इस पर भी दो राय नहीं है कि विपक्ष को नोटबंदी पर सरकार से सवाल पूछने का पूरा हक है. फिर संसद में बहस की चुनौती से क्यों भाग रहा है विपक्ष? क्या विपक्ष में नोटबंदी पर बहस करने की हिम्मत नहीं है?
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