नई दिल्ली : तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रह चुकीं जयललिता का पार्थिव शरीर आज उनके राजनीतिक गुरु एमजीआर की समाधि के पास दफनाया गया. एमजीआर को भी जलाने के बजाए दफनाया गया था. एमजीआर और जयललिता का फिल्मों से लेकर राजनीति तक साथ रहा है. जयललिता ने एमजीआर के बाद एआईएडीएमके की कमान संभाली थी. लेकिन, जयललिता के राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले ही एमजीआर थे. उनका पूरा नाम मारुदुर गोपालन रामचंद्रन है.
एमजीआर एक अभिनेता के तौर पर ही नहीं बल्कि राजनीतिज्ञ के तौर पर भी लोगों के दिलों पर छाए रहे. उन्होंने फिल्मों से अपने करियर की शुरुआत की थी. दक्षिण भारत में फिल्मों से राजनीति में आने का चलन पुराना है. एमजीआर ने भी फिल्मी करियर के बाद राजनीति में कदम रखा. सामाजिक विसंगति, गरीबी, तमिल-द्रविड़ और भाषाई आंदोलन की जिन बातों को तमिल समाज पिछले डेढ़ दशक से सुनता आ रहा था, एमजी रामचंद्रन ने जमीनी स्तर पर उसके लिए संघर्ष किया. के. कामराज के शिक्षा सुधार और अन्नादुरई के सामाजिक विसंगतियों के विरुद्ध जंग से प्रभावित होकर एमजीआर ने इसे अपनी राजनीति का आधार बनाया.
फिल्मों से राजनीति में भी कमाल
वह वर्ष 1953 तक कांग्रेस पार्टी के सदस्य रहे. तब वह खादी पहना करते थे. इसके बाद एमजीआर अन्नादुरई से प्रभावित होकर द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीएमके) से जुड़ गए. उन्होंने राज्य में चल रहे द्रविड़ अभियान में ग्लैमर जोड़ दिया. वह वर्ष 1967 में वह विधायक बने. अन्नादुरई की मृत्यु के बाद वह डीएमके के कोषाध्यक्ष बने. उस समय वर्तमान डीएमके प्रमुख करुणानिधि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री थे.
बाद में करुणानिधि और उनके बीच तालमेल न बैठने के कारण एमजीआर ने आॅल इंडिया द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) नाम से अलग पार्टी बना ली. यह राज्य की एक बड़ी पार्टी बनकर उभरी और डीएमके व एआईएडीएम के बीच कांटे की टक्कर चलती रही. एआईएडीएमके ने साल 1977 के चुनावों में बड़ी सफलता हासिल की और एमजीआर पहली बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने. एमजीआर ने फिल्म और राजनीति कहीं भी अपना प्रबल प्रतिद्धंद्वी नहीं उभरने दिया. हालांकि, शिवाजी गणेशन, एम आर राधा, करुणानिधि चर्चित रहे हों, लेकिन नायक एमजी रामचंद्रण ही बने रहे.
हुआ जानलेवा हमला
तमिलनाडु में जहां पचास के दशक में व्यक्ति पूजा के खिलाफ बड़ा आंदोलन चला, वहीं एमजीआर एक ऐसी शख्सियत के तौर पर उभरे, जो उनके प्रंशसकों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं थी. उन्हें गरीबों का मसीहा भी कहा गया. उनके ऊपर एक बार जानलेवा हमला भी किया गया था. अभिनेता और राजनेता एम.आर. राधा और एक प्रोड्यूसर एक दिन एमजीआर से किसी फिल्म को लेकर बात करने के लिए मिलने गए. बातचीत के दौरान एम.आर. राधा अचानक खड़े हुए और एमजीआर के बाएं कान पर दो बार गोली चला दी. इस हादसे में एमजीआर बच तो गए लेकिन उन्हें दाएं कान से सुनाई देना बंद हो गया.
घर चलाने के लिए थियेटर से जुड़े
एमजीआर का जन्म श्रीलंका में सन 1912 में हुआ था. पिता एमजी मेनन का साया बचपन में ही उठ गया था. मां सत्यभामा और भाई चक्रपाणी तमिलनाडु के कुंबकोनम में आकर बस गए. हालांकि, यह परिवार मूल रूप से केरल का था, लेकिन वह जीविका के लिए तमिलनाडु में ही बसे. वह परिवार गरीबी में जी रहा था. परिवार चलाने के लिए सात साल की उम्र में एमजीआर और उनके भाई ने थियेटर से जुड़कर किसी तरह परिवार के भरण-पोषण का फैसला किया.
‘राजकुमारी’ फिल्म से मिली सफलता
स्कूल-कॉलेज के दिनों में किए गए थियेटर से वह फिल्मों में पहुंच गए. वर्ष 1936 में सती लीलावती में वह पहली बार पर्दे पर आए. एमजीआर ने फिल्म में सहयोगी की भूमिका निभाई थी. इसके बाद उन्होंने कुछ और फिल्में की. ‘राजकुमारी’ फिल्म की सफलता ने उन्हें नायक बना दिया. इसके बाद उन्होंने शालीवाहनम, श्री मुरुगन, राजकुमारी, मोहिनी जैसी फिल्में कीं. लेकिन, वर्ष 1950 में मंथिरि कुमारी और अली बाबावुम 40 थिरुडारगलुम, नाडोडी मन्नन, अनवेबा जैसी फिल्मों ने बॉक्स आफिस में अच्छी कमाई की. उलगाम सुतरुम वालीवन जैसी फिल्म को काफी सराहना मिली.
एमजीआर को फिल्मों में अपनी लोकप्रियता फायदा राजनीति में भी मिला. फिल्मों में उनकी लगभग तीन दशक की यात्रा है. हालांकि, सामाजिक क्षेत्रों में उनकी सक्रियता पहले से बनी हुई थी. एमजीआर की मृत्यु 70 साल की उम्र में 24 दिसंबर 1987 को हो गई थी. उन्हें ‘मिडडे मील योजना’ और महिलाओं के लिए बस चलाने जैसे फैसलों को सराहना मिली. हालांकि, उनकी प्रशासन में अकुशलता और भ्रष्टाचार के लिए आलोचना भी की गई. लेकिन, अंतिम समय तक वह लोगों के दिलों पर राज करते रहे.