राजनीतिक दौर में विवादों से भी रहा ‘अम्मा’ का नाता

चेन्नई : तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता को रविवार शाम दिल का दौरा पड़ने के बाद अपोलो अस्पताल के बाहर समर्थकों की भारी भीड़ जमा हो गई है. लोग अस्पताल के बाहर खड़े होकर उनकी सलामती की दुआएं मांग रहे हैं. जयललिता ने फिल्मी दुनिया से राजनीति तक का सफर तय किया था. इस सफर के दौरान उनका विवादों से भी नाता रहा.
एमजी रामचंद्रन का राजनीतिक साथी
ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कजगम यानी एआईएडीएमके के संस्थापक एमजी रामचंद्रन जयललिता को राजनीति में लेकर आए. उन्होंने जयललिता को प्रचार सचिव नियुक्त किया और चार साल बाद 1984 में उन्हें राज्यसभा के लिए नामांकित भी किया गया. थोड़े समय बाद वो एआईएडीएमके की एक सक्रिय सदस्य बन गईं और उन्हें एमजी रामचंद्रन का राजनीतिक साथी को तौर पर देखा जाने लगा.
दो हिस्सों में पार्टी
एमजी रामचंद्रन मुख्यमंत्री बने तो जयललिता को पार्टी के महासचिव का पद सौंपा गया. एमजी रामचंद्रन की मौत के बाद कुछ सदस्यों ने जानकी रामचंद्रन को पार्टी का उत्तराधिकारी बनाना चाहा जिसकारण पार्टी दो हिस्सों में बंट गई. एक हिस्सा जयललिता के समर्थन में था तो दुसरा हिस्सा जानकी रामचंद्रन के समर्थन में था. 1988 में पार्टी को भारतीय संविधान की धारा 356 के तहत निष्काषित कर दिया गया लेकिन 1989 में पार्टी फिर से संगठित हो गई और जयललिता को पार्टी का प्रमुख बनाया गया.
भ्रष्टाचार के लगे आरोप
इसके बाद जयललिता पर आय से अधिक संपति रखने, भ्रष्टाचार के कई आरोपों और विवादों के बावजूद भी जनता ने जयललिता में भरोसा दिखाया और 1991, 2002 और 2011 में विधानसभा चुनाव जीतने में कामयाबी हासिल की. 1996 में उनकी पार्टी के साथ वो खुद भी चुनावों में हार गई. इस हार के बाद सरकार विरोधी जनभावना और उनके मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर हुए.
पानी की तरह पैसा बहाया
पहली बार मुख्यमंत्री रहते हुए उनपर कई गंभीर आरोप लगे. जयललिता ने कभी शादी नहीं की लेकिन अपने दत्तक पुत्र ‘वीएन सुधाकरण’ की शादी पर पानी की तरह पैसा बहाया. इस पर भी काफी बवाल मचा. 2001 में जयललिता फिर से तमिलनाडू की मुख्यमंत्री बनीं. उन्होंने गैर चुने हुए मुख्यमंत्री के तौर पर कुर्सी संभाल ली. फिर से सत्ता में आने के बाद उनके कई फैसलों पर भी काफी हंगामा हुआ.
विवादित फैसले
जयललिता ने लॉटरी टिकट पर पाबंदी लगा दी और हड़ताल पर जाने के कारण दो लाख कर्मचारियों को एक साथ नौकरी से निकाल दिया. किसानों की मुफ्त बिजली पर रोक लगा दी और राशन की दुकानों में चावल की कीमतें भी बढ़ा दी. इसके अलावा 5000 रुपये से ज्यादा कमाने वालों के राशन कार्ड खारिज भी कर दिए और बस किराया भी बढ़ा दिया. इसी बीच भ्रष्टाचार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी नियुक्ति को अवैध घोषित कर दिया और उन्हें अपनी कुर्सी भरोसेमंद मंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम को सौंपनी पड़ी.
आरोपों से बरी
राजनीतिक जीवन के दौरान जयललिता पर सरकारी पूंजी के गबन, गैर कानूनी ढंग से भूमि अधिग्रहण और आय से अधिक संपत्ति कमाने के कई आरोप लगे. आय से अधिक संपत्ति के एक मामले में 27 सितम्बर 2014 को सजा भी हुई. सजा के कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद भी छोड़ना पड़ा. लेकिन फिर फैसले को कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 2015 में जयललिता को सभी आरोपों से बरी कर दिया. जिसके बाद वो फिर से तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बन गयीं.
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