चेन्नई: तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता को रविवार शाम कार्डियेक अरेस्ट के चलते चेन्नई के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जयललिता के इलाज के लिए दिल्ली से डॉक्टर्स की एक टीम भी चेन्नई रवाना हुई है.
इस बीच जहां ख़बरें आ रही हैं कि जयललिता को दिल का दौरा पड़ा है वहीं अपोलो के डॉक्टर्स ने बताया है कि उन्हें कार्डियेक अरेस्ट की समस्या हुई है. कार्डियेक अरेस्ट और हार्ट अटैक में बहुत फर्क है. आइये समझते हैं कि इन दोनों के बीच के फर्क को.
क्या है कार्डियेक अरेस्ट?
कार्डियेक अरेस्ट वह अवस्था है जब दिल अचानक पूरे शरीर में खून को पम्प करना बंद कर देता है. किसी के अचानक बेहोश हो जाने, सांस ना ले पाने की स्तिथि में कार्डियेक अरेस्ट होता है. यह हार्ट अटैक से अलग होता है. इसे दिल की गति के रुक जाने के तौर पर भी समझा जा सकता है.
हार्ट अटैक और कार्डियेक अरेस्ट में फर्क
जयललिता के दिल की गति रुक गयी है और मेडिकल साइंस में हार्ट अटैक से यह अवस्था बिलकुल अलग है. कार्डियेक अरेस्ट स्थायी और अस्थायी दोनों तरह का होता है. ऐसा कहा जा सकता है कि कार्डियेक अरेस्ट के चलते दिल का दौरा पड़ सकता है लेकिन दिल के दौरे और और कार्डियेक अरेस्ट में बहुत फर्क है.
दरअसल दिल के दौरे में खुद दिल को या दिल के किसी हिस्से को खून मिलना बंद हो जाता है. इस अवस्था में दिल का दौरा पड़ता है जबकि कार्डियेक अरेस्ट में दिल खून को शरीर के अलग-अलग हिस्सों में पम्प करने के लायक नहीं रहता. इन दोनों के बीच एक बड़ा फर्क यह भी है कि हार्ट अटैक के दौरान शख्स को होश रहता है क्योंकि दिल लगातार शरीर में खून पम्प कर रहा होता है.
जबकि कार्डियेक अरेस्ट में शख्स को होश नहीं रहता क्योंकि दिल अचानक खून को पम्प करना बंद कर देता है.
क्या कार्डियेक अरेस्ट से बचा जा सकता है?
कार्डियेक अरेस्ट अरेस्ट से बच पाना संभव है लेकिन ऐसा तभी संभव है जब सही उपचार पीड़ित को सही समय पर मिल जाए. बता दें कि जयललिता को ECMO सपॉर्ट पर रखा गया है.
ईसीएमओ एक्स्ट्राकॉपॉरिअल मेम्ब्रेन ऑक्सिजनेशन का शॉर्ट फॉर्म है. यह एक लाइफ सपोर्ट सिस्टम है, इसके जरिए मरीज़ को कृत्रिम सांस दी जाती है फेफड़े या दिल काम ना करने की स्थिति में शरीर ऑक्सीजन की सप्लाई होती है. इस प्रक्रिया में हार्ट असिस्ट डिवाइस मरीज के शरीर से ब्लड को निकालता है, खून में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को खत्म करता है लाल रक्त कोशिकाओं में ऑक्सीजन पंप करता है जिससे जीवनदायी रक्त मरीज के शरीर में पहुंचे और वह जिंदा रह सके.
श्वसन तंत्र के काम नहीं करने पर मरीज को ईसीएमओ पर रखने के बाद उसके बचने की काफी संभावना होती है एक अध्ययन के मुताबिक ऐसी स्थिकति में 50 से 70 फीसदी मरीज बच जाते हैं. किसी व्यक्ति को इस उपकरण पर कुछ दिन के लिए भी रखा जा सकता है और कुछ हफ्ते भी.